Thursday, January 21, 2021

PRE(IAS)Exam-Paper 1st-Sub Topic- Environment Pollution: Types, Causes, Effects

पर्यावरणीय प्रदूषण: प्रस्‍तावना, कारण एवं प्रकार

पर्यावरणीय प्रदूषण क्या है?

  • पर्यावरणीय प्रदूषण, प्राकृतिक पर्यावरण में दूषित पदार्थों का मिलना है जो प्रकृति, प्राकृतिक संसाधनों और मानव जाति पर हानिकारक प्रभाव डालते हैं।
  • पारिस्थितिक तंत्र के किसी भी घटक अर्थात् वायु, जल अथवा मिट्टी के सभी आयामों में रासायनिक, भौतिक और जैविक विशेषताओं जैसे कोई भी अप्राकृतिक और नकारात्मक परिवर्तन, जो जीवन और संपत्ति के विभिन्न रूपों पर हानिकारक प्रभाव डाल सकते हैं, पर्यावरण प्रदूषण कहलाते हैं।

प्रदूषक क्या है?

  • कोई भी पदार्थ जो जीवों में हानिकारक प्रभाव या बेचैनी का कारण बनता है तो उस विशेष पदार्थ को प्रदूषक कहते हैं।

प्रदूषण फैलाने वाले पदार्थ दो प्रकार के होते हैं

  1. स्‍थायी प्रदूषक: वे प्रदूषक जो अपने मूल स्वरूप में बिना किसी बदलाव के लंबे समय तक पर्यावरण में बने रहते हैं, उन्हें स्‍थायी प्रदूषक कहते हैं। उदाहरण: कीटनाशक, परमाणु अपशिष्ट और प्लास्टिक आदि हैं।
  2. अस्‍थायी प्रदूषक: ये प्रदूषक, स्‍थायी प्रदूषकों के विपरीत होते हैं और सरल रूप में टूट जाते हैं। यदि विखंडन यह प्रक्रिया जीवित जीवों द्वारा की जाती है तो ऐसे प्रदूषकों को बॉयोडिग्रेडेबल प्रदूषकों के रूप में संदर्भित किया जाता है।

अन्य दृष्टिकोण से प्रदूषकों को इस प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है

  1. प्राथमिक प्रदूषक: प्राथमिक प्रदूषक वे होते हैं जो उसी रूप में बने रहते हैं जिस रूप में उन्‍होंने पर्यावरण में प्रवेश किया था। उदाहरण- डी.डी.टी., प्लास्टिक
  2. माध्यमिक प्रदूषक: माध्यमिक प्रदूषक, आपस में प्राथमिक प्रदूषकों की पारस्परिक क्रिया के कारण बनते हैं। उदाहरण- NOx और हाइड्रोकार्बन की पारस्‍परिक क्रिया से PAN बनता है।

प्रकृति में उनके अस्तित्व के अनुसार

  1. मात्रात्मक प्रदूषक: ये पदार्थ पहले से ही वायुमंडल में मौजूद होते हैं लेकिन जब उनकी सांद्रता का स्‍तर किसी विशेष स्‍तर तक पहुँच जाता है, जो कि देहली सीमा से अधिक होता है, तो वे प्रदूषक बन जाते हैं।
  2. गुणात्मक प्रदूषक: ये मानव निर्मित प्रदूषक हैं जैसे- कवकनाशी, शाकनाशी आदि।

उत्पत्ति के अनुसार

  1. मानव निर्मित प्रदूषक
  2. प्राकृतिक प्रदूषक

निपटान की प्रकृति के अनुसार

  1. बॉयोडिग्रेडेबल प्रदूषक
  2. गैर-बॉयोडिग्रेडेबल प्रदूषण

प्रदूषण के प्रकार

वायु प्रदूषण

  • वायु प्रदूषण, कुछ निश्चित मात्रा में और निश्‍चित समय के लिए एक या एक से अधिक हानिकारक घटकों का मिश्रण होता है, जो मानव स्‍वास्‍थ्‍य और कल्‍याण, पशुओं या पौधों के जीवन के प्रति विनाशकारी होते हैं या विनाशकारी होने की प्रवृत्ति रखते हैं।
  • यह हानिकारक पदार्थों के निर्वहन से वायु के दूषित पदार्थ होते हैं।

कुछ वायु प्रदूषक, उनके स्रोत एवं प्रभाव

प्रदूषकों के नाम

स्रोत

स्‍वास्‍थ्‍य प्रभाव

नाइट्रोजन ऑक्‍साइड

उद्योग, वाहन और ऊर्जा संयत्र

फोफड़ों, श्‍वसन प्रणाली में समस्‍या और इससे अस्‍थमा और ब्रॉनकाइटिस होता है।

कार्बन मोनोऑक्‍साइड

जीवाश्‍म ईंधनों का उत्‍सर्जन एवं जलना

गंभीर सरदर्द, श्‍लेषमा झिल्‍ली में जलन, बेहोसी और मृत्‍यु।

कार्बन डाईऑक्‍साइड

जीवाश्‍म ईंधनों का जलना

देखने में समस्‍या, गंभीर सरदर्द और हृदय में खिचाव।

निलंबित कणिका तत्‍व

वाहनों का उत्‍सर्जन एवं जीवाश्‍म ईंधनों का जलना

फेफड़ों में जलन से आर.बी.सी. का विकास रूकना और फेफड़ों संबंधी कार्यों का सुचारू रूप  न होना।

सल्‍फर ऑक्‍साइड

उद्योग एवं ऊर्जा संयत्र

आंखों और गले में जलन, एलर्जी, खांसी आदि

स्‍मॉग

उद्योग और वाहनों का प्रदूषण

श्‍वसन एवं आंखों की समस्‍या।

हाइड्रोकार्बन

जीवाश्‍म ईंधनों का जलना

गुर्दे की समस्‍या, आंख, नाक और गले में जलन, अस्‍थमा, उच्‍च रक्‍तचाप और फेफड़ों पर कैंसरकारक प्रभाव।

क्‍लोरोफ्लोरोकार्बन

रेफ्रिजरेटर, जेट से उत्‍सर्जन

ओजोन परत का क्षय, ग्‍लोबल वार्मिंग

 

  • अन्य प्रदूषक कैडमियम, सीसा, पारा, सिलिका, कोयला धूल और कण और रेडियोधर्मी प्रदूषक हैं।

नियंत्रण उपाय

  • नीतिगत उपाय
  • औद्योगिक प्रक्रिया का संशोधन और उपयुक्त ईंधन का चयन और इसका उपयोग
  • प्रदूषकों का संग्रह और विभिन्न तरीकों से निम्‍न विषाक्त रूपों में इसे परिवर्तित करना

सरकार की पहल

  • राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता निगरानी कार्यक्रम (एन.ए.एम.पी.)
  • राष्ट्रीय व्‍यापक वायु गुणवत्ता मानक (एन.ए.ए.क्‍यू.एस.)

जल प्रदूषण

  • पानी में कार्बनिक, अकार्बनिक, जैविक और रेडियोसक्रिय जैसे निश्चित पदार्थों का मिलना, जो पानी की गुणवत्ता को कम करता है और उपयोग के लिए इसे अस्वास्थ्यकर बनाता है।
  • जल प्रदूषण केवल सतही जल तक ही सीमित नहीं है बल्कि भू-जल, समुद्र और महासागर तक भी फैला हुआ है।

स्रोत

बिंदु स्रोत: ये प्रदूषण की उत्पत्ति के स्रोत से सीधे जल निकायों की ओर इंगित होते हैं और इस प्रकार वे विनियमित करने में आसान होते हैं।

गैर-बिंदु स्रोत: ये स्रोत कईं प्रसारित स्रोतों से संबंधित होते हैं और इस प्रकार उन्हें विनियमित करना मुश्किल होता है।

कुछ स्रोत इस प्रकार हैं

  • औद्योगिक और सामुदायिक अपशिष्ट जल: खनन, लोहा और इस्पात, फार्मास्यूटिकल्स, खाद्य प्रसंस्करण, साबुन और डिटर्जेंट और कागज और लुगदी जैसे उद्योग हैं।
  • कृषि स्रोत: ऊष्मीय प्रदूषण (थर्मल ऊर्जा संयत्रों द्वारा गर्म पानी का निर्वहन, पानी में घुलित ऑक्सीजन की कमी का कारण बनता है) और भूमिगत जल प्रदूषण हैं।
  • समुद्री प्रदूषण: नदी का निर्वहन, मानव निर्मित प्रदूषण और तेल का फैलना आदि हैं।

प्रभाव

  • पानी में पारे की अधिक मात्रा से मनुष्यों में मिनमाता रोग और मछलियों में जलोदर हो सकता है। पानी में सीसा की अधिक मात्रा से डिस्लेक्सिया हो सकता है, कैडमियम विषाक्तता के कारण इटाई-इटाई रोग आदि हो सकते हैं।
  • प्रदूषित पानी में घुलित ऑक्सीजन (डी.ओ.) की मात्रा कम होती है जो संवेदनशील जीवों के लिए महत्वपूर्ण होती है, जिससे संवेदनशील जीव समाप्त हो जाते हैं।
  • पेयजल में नाइट्रेट की अधिक मात्रा शिशुओं और मानव स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है, फ्लोराइड की अधिकता न्‍यूरोमस्‍कुलर बीमारियों और दांतों की विकृति, हड्डियों का सख्‍त होना और जोड़ों में दर्द का कारण बन सकती है।
  • जैविक वृद्धि और यूट्रोफिकेशन।

नोट: ’Eu’ का अर्थ है स्वस्थ और ‘trophy’ का अर्थ है पोषण। जल निकायों में पोषक तत्वों के सुधार से यूट्रोफिकेशन होता है। जल निकाय में घरेलू अपशिष्ट निर्वहन, कृषि अपशिष्ट, भूमि जल निकासी और औद्योगिक अपशिष्ट से एक जल निकाय में पोषक तत्वों में तेजी से वृद्धि होती है जिससे जल निकायों की प्रारंभिक आयु बढ़ने की शुरूआत होती है।

नियंत्रण उपाय

  • शामिल तकनीकों को बदलकर पानी का उपयोग कम से कम किया जाना चाहिए।
  • पानी का पुनर्चक्रण और उपचार का उपयोग अधिकतम संभव सीमा तक किया जाना चाहिए।
  • अपशिष्ट जल के स्त्राव की मात्रा को कम से कम किया जा सकता है।
  • कीटनाशकों और उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग से बचना चाहिए।
  • जैविक खेती और उर्वरकों के रूप में पशु अवशेषों का कुशल उपयोग करना चाहिए।

मृदा प्रदूषण

  • मृदा में अनैच्छिक पदार्थों का मिलना जो मृदा की भौतिक, रासायनिक और जैविक विशेषताओं को नकारात्‍मक रूप से प्रभावित करते हैं और इसकी उत्‍पादकता को कम करते हैं, इसे मृदा प्रदूषण कहते हैं।
  • जो कारक मृदा के जैविक संतुलन को प्रभावित करते हैं और गुणवत्‍ता, रंग और खनिज सामग्री को नष्‍ट करते हैं, उन्‍हें मृदा प्रदूषक कहते हैं।
  • उर्वरक, कीटनाशक, कवकनाशक, ठोस अपशिष्‍ट की डंपिंग, वनोन्‍मूलन और प्रदूषण, शहरीकरण के कारण हैं और अन्‍य मानवजनित पदार्थ, मृदा प्रदूषण का कारण हैं। 

स्रोत:

  • औद्योगिक अपशिष्‍ट: सीसा, कैडमियम, पारा, क्षार, कार्बनिक पदार्थ और रसायन।
  • कृषि अपशिष्‍ट: उर्वरक, कीटनाशक दवाइयां और खाद।
  • फेंकी हुई सामग्री और रेडियोधर्मी तत्व और प्लास्टिक की थैलियां।

प्रभाव

  • कृषि: यह मृदा की उर्वरता को कम करता है और इस प्रकार फसल की उपज कम होती है; मृदा क्षरण और लवणता में वृद्धि।
  • पर्यावरणीय असंतुलन और वनस्‍‍पति एवं जीव-जन्‍तु असंतुलन बढ़ जाता है।
  • शहरी क्षेत्रों में समस्याएं जैसे नालियां भरना, गैस निकलना, दुर्गंध और अपशिष्‍ट प्रबंधन में समस्या।
  • रेडियोधर्मी किरणें, जैव-आवर्धन और प्रदूषक गैस निकलने से स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं होती हैं।

नियंत्रण के उपाय

  • वन-रोपण, वनीकरण और जैविक कृषि का उपयोग।
  • ठोस अपशिष्‍ट प्रबंधन और निर्माण कार्य क्षेत्रों से निकलने वाले कचरे में कमी।
  • प्लास्टिक की थैलियों का उपयोग बंद करना और कागज तथा कपड़े जैसी नष्‍ट की जा सकने वाली सामग्री के थैलों का उपयोग करना।
  • जैवचिकित्‍सीय कचरे को एकत्र करके और जलाकर नष्‍ट किया जाना चाहिए।


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