Monday, January 18, 2021

PRE(IAS)Exam-Paper 1st-Sub Topic-RTI Act

हाल ही में सरकार ने सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम 2005 में संशोधन किया है। इसलिए, समाचार में होने के नाते, यह परीक्षा के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हो गया है। यह लेखन आरटीआई अधिनियम के बारे में सभी आवश्यक
विवरणों को शामिल करता है जो यूपीएससी, राज्य पीसीएस और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे जा सकते हैं।

सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम, 2005

 

  • सूचना के अधिकार की मांग की शुरुआत ग्रामीण भारत में, ग्रामीण खातों में पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से राजस्थान में मजदूर किसान शक्ति संगठन (MKSS) के आंदोलन के साथ हुई। वे सरकारी फाइलों में दर्ज आधिकारिक सूचना में उपलब्ध जानकारी प्राप्त करना चाहते थे।
  • एक RTI कानून का मसौदा 1993 में सीईआरसी, अहमदाबाद द्वारा प्रस्तावित किया गया था।
  • 1996 में, न्यायमूर्ति पी. बी. सावंत की अध्यक्षता में भारतीय प्रेस परिषद द्वारा भारत सरकार को सूचना के अधिकार पर एक मसौदा मॉडल कानून प्रस्तुत किया गया। मसौदा मॉडल कानून को बाद में संशोधित कर सूचना की स्वतंत्रता विधेयक, 1997 नाम दिया गया था।
  • केंद्रीय सरकार ने श्री एच. डी. शौरी की अध्यक्षता में एक कार्य दल का गठन किया और उस दल को सूचना की स्वतंत्रता पर मसौदा कानून तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। शौरी समिति ने 1997 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, और शौरी समिति के मसौदा कानून के आधार पर एक मसौदा कानून प्रकाशित किया गया था। बाद में, उसी रिपोर्ट का उपयोग सूचना की स्वतंत्रता विधेयक, 2000 के लिए किया गया था।
  • सूचना की स्वतंत्रता विधेयक, 2000 को संसदीय स्थायी समिति को भेजा गया था। सूचना की स्वतंत्रता विधेयक, 2002 वर्ष 2002 में, संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित किया गया था।
  • 2004 में, यूपीए सरकार केंद्र में सत्ता में आई और अपने सामान्य न्यूनतम कार्यक्रम के तहत "सूचना का अधिकार अधिनियम" को अधिक सहभागी और सार्थक बनाने का वादा किया।
  • सरकार के सामान्य न्यूनतम कार्यक्रम के कार्यान्वयन के बाद एक राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) की स्थापना की गई।
  • सूचना के अधिकार के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा वर्ष 2004 में एक जनहित याचिका (पीआईएल) मामले की सुनवाई की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को इसके लिए RTI कानून बनाने का आदेश दिया।
  • वर्ष 2005 में, RTI विधेयक को आखिरकार संसद में पारित किया गया।

परिचय

  • सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 सूचना के अधिकार के साथ संसद द्वारा जून 2005 में पारित किया गया था और यह अक्टूबर 2005 में लागू हुआ।
  • RTI अधिनियम, 2005 ने प्रत्येक नागरिक के लिए सूचना के अधिकार की व्यावहारिक शासन-प्रणाली स्थापित करने के उद्देश्य से सूचना की स्वतंत्रता अधिनियम, 2002 को प्रतिस्थापित किया।
  • RTI, संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (a) के अनुरूप जवाबदेही और पारदर्शिता विकसित और सुनिश्चित करने का एक तंत्र है।
  • यह प्रत्येक भारतीय नागरिक का कानूनी अधिकार है।

RTI अधिनियम2005 की प्रमुख विशेषताएं

  • इसके प्रावधान के तहत, भारत का कोई भी नागरिक एक सार्वजनिक प्राधिकरण से सूचना प्राप्त करने का अनुरोध कर सकता है। आवश्यक सूचना को 30 दिनों के भीतर प्रदान किया जाना ज़रूरी है।
  • सार्वजनिक प्राधिकरण से किसी भी मुद्दे पर सूचना प्राप्त करने के लिए केंद्र या राज्य में लोक सूचना अधिकारी को अनुरोध प्रस्तुत करना आवश्यक है।
  • RTI अधिनियम प्रत्येक सरकारी निकाय को जनता के लिए सूचना के व्यापक प्रसार हेतु अपने रिकॉर्ड को कम्प्यूटरीकृत कर अपने कार्यालयों को पारदर्शी बनाने के लिए प्रोत्साहित करता है।
  • जम्मू और कश्मीर इस RTI अधिनियम, 2005 के तहत नहीं आएंगे। हालांकि, इनके पास एक अलग सूचना का अधिकार अधिनियम, 2009 है।
  • सरकारी गोपनीयता अधिनियम, 1923 द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों को RTI अधिनियम द्वारा शिथिल कर दिया गया था।
  • अधिनियम के तहत गारंटीकृत सूचना के अधिकार को लागू करने के लिए अधिनियम ने त्रिस्तरीय संरचना स्थापित की है। वह तीन स्तर हैं - लोक सूचना अधिकारी, प्रथम अपीलीय अधिकारी और केंद्रीय सूचना आयोग (CIC)।
  • आवेदन प्राप्त होने की तारीख से 30 दिनों के भीतर सूचना प्रस्तुत करना आवश्यक है।
  • 30 दिनों के भीतर सूचना न मिलने की स्थिति में, सूचना की मांग करने वाला व्यक्ति अपील दायर कर सकता है। अपीलीय प्राधिकारी को 30 दिनों या विशेष स्थितियों में, 45 दिनों के भीतर जवाब देना आवश्यक होगा।
  • सूचना आपूर्ति न होने की स्थिति में, व्यक्ति 90 दिनों के भीतर दूसरी अपील दायर कर सकता है।
  • RTI के तहत आने वाले सार्वजनिक प्राधिकरण केंद्र और राज्य (विधानमंडल, कार्यकारी, न्यायपालिका) में, सरकार द्वारा स्वामित्व/वित्तपोषित निकाय/गैर सरकारी संगठन, निजीकृत सार्वजनिक उपयोगिता कंपनियां सभी संवैधानिक निकाय हैं।
  • RTI के तहत अपवर्जित सार्वजनिक प्राधिकरण केंद्रीय खुफिया और सुरक्षा एजेंसियां, अधिसूचना के माध्यम से निर्दिष्ट राज्य की एजेंसियां ​​हैं। अपवर्जन निरपेक्ष नहीं है।
  • केंद्रीय सूचना आयोग में एक मुख्य सूचना आयुक्त और 10 केंद्रीय सूचना आयुक्त शामिल होंगे।
  • मुख्य सूचना आयुक्त का कार्यकाल उसके पदभार संभालने की तिथि से पांच वर्ष की अवधि का होगा। वह उस पद पर पुन: नियुक्ति का हकदार नहीं होगा।
  • इस अधिनियम में 31 धाराएँ और 6 अध्याय हैं।
  • धारा 8 सार्वजनिक प्राधिकारियों से संबंधित है जिसे इस अधिनियम के तहत छूट दी गई है।

RTI अधिनियम का उद्देश्य

  • गोपनीयता की एक प्रचलित संस्कृति को पारदर्शिता की संस्कृति से प्रतिस्थापित करना।
  • देश के नागरिकों को सशक्त बनाना।
  • सार्वजनिक प्राधिकारियों के कार्य में पारदर्शिता को बढ़ावा देना।
  • भ्रष्टाचार को रोकना और खत्म करना।
  • नागरिक और सरकार के बीच के संबंध बदलना।
  • सत्ता के नाजायज संकेन्द्रण को खत्म करना।

RTI अधिनियम के हालिया संशोधन

  • विधेयक केंद्रीय सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों की सेवा के नियम व शर्तों को बदलने का अधिकार केंद्र सरकार को देता है।
  • यह स्पष्ट रूप से बताता है कि अब से कार्यालय का कार्यकाल और केंद्र और राज्य में मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों के वेतन और भत्ते केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित किए जाएंगे।
  • मुख्य सूचना आयुक्त (CIC) और अन्य सूचना आयुक्तों को एक अवधि के लिए और केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित शर्तों पर नियुक्त किया जाएगा।

चुनौतियां/समस्याएं

  • हाल ही में हुए अध्ययन के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में केवल 36 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में केवल 38 प्रतिशत लोगों ने RTI अधिनियम के बारे में सुना है।
  • RTI अधिनियम में महिलाओं की भागीदारी प्रगतिशील और सशक्त समाज के लिए पर्याप्त नहीं है।
  • आंकड़े बताते हैं कि लगभग 45% सार्वजनिक सूचना अधिकारियों को पदभार मिलने के समय कोई प्रशिक्षण नहीं दिया गया था।
  • केंद्र और राज्य सरकार के कार्यालयों द्वारा खराब रिकॉर्ड रखने की प्रवृत्ति रही है। यह RTI अधिनियम की धारा 4 का उल्लंघन करता है।
  • मामलों का लंबित होना दर्शाता है कि सरकार RTI के प्रति लापरवाह नज़रिया रखती है।
  • सूचना आयोगों को चलाने के लिए आवश्यक बुनियादी ढाँचे और कर्मचारियों की भारी कमी है।
  • व्हिसल-ब्लोअर (मुखबिर) संरक्षण अधिनियम का कमजोर होना चिंता का कारण है।
  • RTI कार्यकर्ताओं के कार्य के दौरान उनकी सुरक्षा और संरक्षण, चिंता के कारण हैं।
  • न्यायपालिका और राजनीतिक दलों के शामिल न होने से मन में संदेह पैदा होता है और व्यवस्था को और अधिक पारदर्शी और जवाबदेह बनाने की लड़ाई में बाधा उत्पन्न होती है।
  • हालिया बदलाव, सूचना आयुक्तों के चयन में राजनीतिक संरक्षण पैदा करेंगे और RTI अधिनियम के मुख्य उद्देश्य को कमजोर करेंगे।


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