भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन (1905-1916)
- भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में 1905 की अवधि को उग्रवाद के युग के रूप में जाना जाता था।
- चरमपंथी या आक्रामक राष्ट्रवादियों का मानना था कि सफलता को लड़कर हासिल किया जा सकता है।
- महत्वपूर्ण चरमपंथी नेता लाला लाजपत रॉय, बाल गंगाधर तिलक, बिपिन चंद्र पाल और अरबिंदो घोष थे।
चरमपंथ के उदय का कारण
- नरमपंथी भारतीय परिषद अधिनियम (1892) के विधान परिषदों के विस्तार के अलावा कोई भी उल्लेखनीय सफलता हासिल नहीं कर सके।
- 1896-97 के अकाल और महामारी ने संपूर्ण देश को प्रभावित किया और इससे विशाल जनसमूह भी प्रभावित हुआ।
- लोगों की आर्थिक अवस्था दयनीय हो गई।
- रंग-भेद के आधार पर दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों के साथ बुरा व्यवहार किया गया।
- लॉर्ड कर्जन का प्रतिक्रियावादी शासन चरमपंथियों के उदय का तत्कालीन कारण था।
- स्थानीय निकाय पर भारतीय नियंत्रण को कम करने हेतु इन्होंने कलकत्ता निगम अधिनियम (1899) पारित किया।
- विश्वविद्यालय अधिनियम (1904) ने विश्वविद्यालय निकायों में निर्वाचित सदस्यों को कम कर दिया। इसने विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता को भी कम कर दिया और सरकारी विभाग बनाए गए।
- अधिग्रहण अधिनियम और आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम ने सभी लोगों की स्वतंत्रता को कम कर दिया।
- बंगाल का विभाजन (1905) उनका सबसे खराब कदम था।
चरमपंथियों द्वारा उपयोग की जाने वाली पद्धतियां
- सरकारी अदालतों, स्कूलों और कॉलेजों का बहिष्कार करके ब्रिटिश सरकार के साथ सहयोग न करना।
- स्वदेशी का प्रचार और विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार।
- राष्ट्रीय शिक्षा का आरंभ और संवर्धन।
चरमपंथियों के नेता
- चरमपंथियों का नेतृत्व बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत रॉय, बिपिनचन्द्र पाल, और अरबिंदो घोष ने किया।
- बाल गंगाधर तिलक को भारत में ब्रिटिश विरोधी आंदोलन के लोकप्रिय नेता एवं वास्तविक संस्थापक के तौर पर जाना जाता है। उन्हें 'लोकमान्य' के रूप में भी जाना जाता था। उन्होंने मराठा और केसरी उपाधि लौटाकर अंग्रेजों का विरोध किया। उन्हें उनकी राष्ट्रवादी गतिविधियों के लिए ब्रिटिश द्वारा दो बार जेल भेजा गया और उन्हें सन् 1908 में छह साल तक मंडोली निर्वासित कर दिया गया। उन्होंने पूना में 1916 में होम रूल लीग की स्थापना की और उन्होंने घोषित किया कि "स्वराज मेरा जन्म सिद्ध-अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा।
- लाला लाजपत रॉय 'पंजाब के शेर' के नाम से जाने जाते हैं। स्वदेशी आंदोलन में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने 1916 में अमेरिका में भारतीय होम रुल लीग की स्थापना की। राजद्रोह के आधार पर उन्हें मंडालया भेज दिया गया। साइमन कमीशन के खिलाफ जुलूस का नेतृत्व करते हुए वे गंभीर रुप से घायल हो गए और 17 नवंबर, 1928 को उनका निधन हो गया।
- बिपिन चंद्र पाल ने अपना करियर उदारवादी के रूप में शुरू किया और आगे जाकर चरमपंथी बन गए।
- अरबिंदो घोष एक अन्य चरमपंथी नेता थे और उन्होंने सक्रिय रूप से स्वदेशी आंदोलन में भाग लिया।
- वे कैद में भी थे। रिहाई के बाद वे पोंडीचेरी की फ्रेंच बस्तियों में जाकर बस गए और आध्यात्मिक गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित किया।
बंगाल का विभाजन (1905)
- बंगाल विभाजन की घोषणा कर्जन ने की।
- विभाजन का कारण प्रशासन में सुधार करना दिया गया।
- लेकिन वास्तविक उद्देश्य 'फूट डालो और शासन करने’ की नीति थी। मुसलमानों के लिए एक अलग राज्य बनाने के आदेश पर विभाजन किया गया था ताकि देश में सांप्रदायिकता रुपी जहर को घोला जा सके।
- हालांकि, भारतीयों ने विभाजन को बंगाल में बढ़ते राष्ट्रीय आंदोलन को बाधित करने और राज्य में हिंदुओं और मुसलमानों को विभाजित करने के लिए अंग्रेजों के प्रयास के रूप में देखा।
- विभाजन के विरोध में सड़कों और प्रेस में व्यापक आंदोलन आरंभ हो गया। भारत के विभिन्न हिस्सों के लोगों ने पूरे देश में बंगाल के विभाजन का विरोध किया।
- यह विरोध संगठित बैठकों, जुलूस और प्रदर्शनों द्वारा किया जाता था। हिन्दू और मुसलमानों ने एक-दूसरे के हाथों पर 'राखी' बांधकर अपनी एकता को प्रदर्शित किया और उनका विरोध किया।
स्वदेशी आंदोलन
- स्वदेशी आंदोलन ने सरकारी सेवा, अदालतों, स्कूलों और कॉलेजों और विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार, राष्ट्रीय स्कूलों और कॉलेजों की स्थापना के माध्यम से स्वदेशी वस्तुओं का प्रचार, राष्ट्रीय शिक्षा को बढ़ावा देने जैसे कार्यक्रमों को शामिल करके किया।
- यह राजनीतिक और आर्थिक अर्थात् दोनों तरह का आंदोलन था।
- बंगाल में जमीदारों ने भी आंदोलन का समर्थन किया।
- महिलाओं और छात्रों पर रोक लगाई गई। छात्रों ने विदेशी कागज से बनी पुस्तकों का उपयोग करने से इनकार कर दिया।
- बाल गंगाधर तिलक ने बहिष्कार के महत्व को समझा और भारत में संपूर्ण ब्रिटिश प्रशासनिक मशीनरी को विघटित करने के लिए इसका इस्तेमाल अस्त्र के तौर पर किया।
- स्वदेशी उद्योगों की स्थापना में बहिष्कार और स्वदेशी आंदोलनों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जिसके परिणामस्वरुप कपड़ा मिलों, बैंकों, होजरी, टेनेरीज, रासायनिक कार्यों और बीमा कंपनियां, स्वदेशी स्टोर खोले गए।
- इसने अंग्रेजों को बंगाल का विभाजन वापस लेने पर मजबूर कर दिया और 1911 में विभाजन को वापस ले लिया गया।
हिंद स्वराज
- जब बंगाल विभाजन का आंदोलन अपने चरम पर था तब कांग्रेस का वार्षिक सत्र 1906 में दादाभाई नरौजी की अध्यक्षता में कलकत्ता में आयोजित किया गया था।
- यह सत्र बहुत ही महत्वपूर्ण था क्योंकि इसमें नरमपंथियों और चरमपंथियों के बीच सुलह हुई थी।
- कांग्रेस ने बंगाल के विभाजन की निंदा की। दादाभाई नौरोजी के शब्दों में यह इंग्लैंड की सबसे बड़ी गलती थी।
- शिक्षा का प्रचार कांग्रेस के उद्देश्य के रूप में घोषित किया गया।
- स्वदेशी और बॉयकॉट आंदोलन को कांग्रेस ने पूर्ण समर्थन दिया। पहली बार बॉयकॉट को एक राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने के लिए अधिकृत किया गया।
मुस्लिम लीग का निर्माण (1906)
- जैसे-जैसे कट्टरपंथी आंदोलन मजबूत होता गया, अंग्रेजों ने भारतीयों के बीच एकता की कड़ी को तोड़ने के तरीकों की तलाश करना आरंभ कर दिया।
- उन्होंने बंगाल के विभाजन के माध्यम से यह करने का प्रयास किया और भारतीय लोगों के बीच सांप्रदायिकता के बीज बोने का प्रयास किया।
- उन्होंने मुसलमानों को स्वयं के लिए एक स्थायी राजनीतिक संघ बनाने हेतु प्रेरित किया।
- दिसंबर, 1906 में ढ़ाका में मुहम्मदन शैक्षिक सम्मेलन के दौरान नवाब सलीम उल्ला खान ने मुस्लिम हितों की देखभाल के लिए केन्द्रीय मुहम्मदन एसोसिएशन की स्थापना करने का विचार सामने रखा।
- तदनुसार, 30 दिसंबर, 1906 को अखिल भारतीय मुस्लिम लीग की स्थापना हुई। एक और विशिष्ट व्यक्ति अगा खान को इसका अध्यक्ष चुना गया।
- लीग का मुख्य उद्देश्य भारत में मुसलमानों के अधिकारों की रक्षा करने के साथ ही साथ अपनी जरुरतों को सरकार के समक्ष रखना भी था।
- अलग मतदाताओं के मुद्दे को प्रोत्साहित करके सरकार ने भारतीयों के बीच सांप्रदायिकता और अलगाववाद के बीज बोए।
- मुस्लिम लीग का गठन 'फूट डालो और शासन करो' की ब्रिटिश मास्टर रणनीति का पहला फल माना जाता है। मोहम्मद अली जिन्ना बाद में लीग में शामिल हुए।
सूरत सत्र (1907)
- सन् 1907 के सूरत सत्र में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस दो समूहों चरमपंथी और उदारवादी में विभाजित हो गई ।
- चरमपंथियों का नेतृत्व बाल, पाल, लाल ने किया जबकि जी. के. गोखले ने उदारवादियों का नेतृत्व किया।
- निर्वाचित अध्यक्ष रास बिहारी घोष पर विवाद बढ़ गया क्योंकि चरमपंथियों ने उन्हें स्वीकार नहीं किया।
- चरमपंथी लाला लाजपत राय को चुनना चाहते थे।
- इसके बाद सरकार ने उनके समाचार पत्रों को दमन करने और उनके नेताओं को गिरफ्तार करके चरमपंथियों पर बड़े पैमाने पर हमला किया।
मोर्ले-मिंटो सुधार (1909)
- 1909 का परिषद अधिनियम 1892 के सुधारों का विस्तार था जिसे तत्कालीन सचिव (लॉर्ड मॉर्ले) और तत्कालीन वायसरॉय (लॉर्ड मिंटो) के नाम के बाद भी मॉर्ले-मिंटो सुधार के नाम से जाना जाता था।
- इसने विधान सभा के सदस्यों को सोलह से बढ़ाकर साठ तक कर दिया।
- कुछ गैर-निर्वाचित सदस्यों को भी जोड़ा गया।
- यद्यपि, विधान परिषद के सदस्यों में वृद्धि की गई। उनके पास वास्तविक शक्तियां नहीं थीं। वे मुख्य रूप से सलाहकार थे।
- वे किसी भी बिल को पारित होने से रोक नहीं सकते थे और न ही उनकी बजट के ऊपर कोई पकड़ थी।
- अंग्रेजों ने भारतीय राजनीति में मुस्लिमों के लिए अलग मतदाताओं का आरंभ करके सांप्रदायिकता का बीज बोने की एक बहुत ही सोची समझी साजिश की।
- इसका तात्पर्य यह था कि मुसलमानों के वर्चस्व वाली एसेम्बली में केवल मुस्लिम उम्मीदवार ही चुने जा सकते हैं।
- हिंदु केवल हिंदुओं को वोट दे सकते थे और मुसलमान केवल मुसलमानों के लिए वोट कर सकते थे।
- ‘फूट डालो और शासन करो’ की अंग्रेजों की नीति अर्थात् साम्प्रदायिक मतदाता सूची के खिलाफ अनेक नेताओं ने विरोध किया।
बंगाल विभाजन का निरासन
- क्रांतिकारी आतंकवाद के खतरे को रोकने के लिए 1911 में बंगाल के विभाजन को रद्द करने का निर्णय लिया गया।
- मुस्लिम राजनीतिक अभिजात वर्ग के लिए बंगाल विभाजन का लोप आघात के रूप में सामने आया।
- मुसलमानों को तर करने के लिए राजधानी को दिल्ली स्थानांतरित करने का भी निर्णय लिया गया। यद्यपि, यह मुस्लिमों की प्रतिष्ठा से जुड़ा था लेकिन मुस्लिम खुश नहीं थे।
- बिहार और उड़ीसा को बंगाल से अलग कर दिया गया और असम को एक अलग प्रांत बना दिया गया।
गदर पार्टी (1913)
- लाला हरदयाल, तारकनाथ दास तथा सोहन सिंह बखना द्वारा निर्मित।
- गदर नाम साप्ताहिक पेपर से लिया गया था जो 1 नवंबर, 1913 को 1857 के विद्रोह का स्मरणोत्सव मनाने के लिए आरंभ किया गया था।
- इसका मुख्यालय सेन फ्रांसिस्को में था।
- प्रथम विश्व युद्ध के आरंभ ने गदर पार्टी को सरकार से भारत को मुक्त कराने का एक मौका दिया जो उनके कारण के प्रति उदासीन था।
- उन्होंने बंगाल क्रांतिकारियों के सहयोग से एक समन्वित विद्रोह के लिए हजारों की संख्या में भारत लौटना शुरू कर दिया। विश्वासघात के कारण आखिरी क्षण में उनकी योजना विफल हो गई।
कोमागता मारू घटना
- इस घटना का महत्व इस तथ्य में निहित है कि उसने पंजाब में विद्रोहात्मक स्थिति पैदा की।
- कोमागता मारू एक जहाज का नाम था जो मुख्य रुप से सिंगापुर से वैंकूवर तक प्रवासी सिक्ख और पंजाबी मुस्लिम-प्रवासियों को ले जा रहा था।
- दो महीने की बेकार और अनिश्चितता के बाद वे कनाडा के अधिकारियों के सहयोग से वापस आ गए।
- आमतौर पर यह माना जाता था कि कैनेडियन अधिकारी ब्रिटिश सरकार से प्रभावित थे।
- जहाज ने अंततः सितंबर, 1914 में कलकत्ता में अपना लंगर डाला लेकिन कैदियों ने पंजाब जाने वाली ट्रेन पर जाने से इनकार कर दिया।
- नजदीकी कलकत्ता के पास पुलिस के साथ जाने में 22 व्यक्तियों की मृत्यु हो गई।
- इससे प्रभावित होकर और युद्ध छिड़ने के साथ ही गदर नेताओं ने भारत में ब्रिटिश शासन पर हिंसक हमले करने का निर्णय लिया।
- इस प्रकार, पंजाब में एक विस्फोटक स्थिति उत्पन्न हो गई थी।
प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान राष्ट्रीय आंदोलन
- प्रथम विश्व युद्ध सन् 1914 में आरंभ हुआ।
- यह युद्ध औपनिवेशिक एकाधिकार पाने के लिए यूरोपीय राष्ट्रों के बीच हुआ था। युद्ध के समय ब्रिटिश सरकार ने अपने संकट के समय भारतीय नेताओं से सहयोग के लिए अपील की।
- भारतीय नेताओं ने सहमति व्यक्त की लेकिन उन्होंने अपने कुछ नियम और शर्तें अंग्रेजो के समक्ष रखे की युद्ध समाप्त होने के बाद ब्रिटिश सरकार भारतीय लोगों को संवैधानिक (विधायी और प्रशासनिक) शक्तियां प्रदान करेगी।
- दुर्भाग्य से प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश सरकार द्वारा उठाए गए कदमों ने भारतीय लोगों के बीच अशांति पैदा कर दी। इसका मुख्य कारण यह था कि प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश सरकार ने बड़ी मात्रा में ऋण लिया था जो उन्हें वापस करना था।
- उन्होंने भूमि के किराए अर्थात् लगान में वृद्धि की। उन्होंने ब्रिटिश सेना में जबरदस्ती भारतीयों की भर्ती की।
- उन्होंने आवश्यक वस्तुओं की कीमत में वृद्धि कर दी और निजी और व्यावसायिक आय पर भी कर लगाए।
- परिणामस्वरूप, उन्हें भारतीय समाज से विरोध का सामना करना पड़ा।
- चंपारण, बारडोली, खेड़ा और अहमदाबाद के किसानों और कर्मचारियों ने ब्रिटिश सरकार की शोषक नीतियों के खिलाफ सक्रिय रूप से विरोध प्रदर्शन किया।
- लाखों छात्रों ने स्कूल और कॉलेज छोड़ दिए। सैकड़ों वकीलों ने अपना अभ्यास छोड़ दिया। इस आंदोलन में महिलाओं ने भी महत्वपूर्ण योगदान दिया और उनकी सहभागिता गांधी के उदय के साथ ओर भी व्यापक हो गई।
- विदेशी कपड़े का बहिष्कार एक व्यापक आंदोलन बन गया जिसमें हजारों विदेशी कपड़ों को जलाकर विरोध प्रदर्शन किया और इसकी चिंगारी संपूर्ण भारत के नीले गगन में देखने को मिली।
लखनऊ सत्र (1916)
- सन् 1916 में कांग्रेस का 31वां सत्र लखनऊ में आयोजित किया गया।
- इसकी अध्यक्षता अंबिका चरन मजूमदार ने की जो कि एक प्रसिद्ध और कांग्रेस के उदय के बाद से ही सक्रिय रूप से इससे जुड़ी हुईं थीं।
- लगभग 10 वर्ष बीत जाने के बाद नरमपंथी और चरमपंथी दोनों एकजुट हो गए जो राष्ट्रीय आंदोलन के लिए एक अच्छा संकेत था।
- इस सत्र में कांग्रेस और मुस्लिम लीग एक-दूसरे के काफी करीब आए और उन्होंने ऐतिहासिक लखनऊ संधि पर हस्ताक्षर किए।
- वायसराय को एक संयुक्त सुधार योजना भेजी गई।
- उन्होंने निर्णय किया कि वे स्व-सरकार बनाने की मांग एकजुट होकर करेंगे।
- उन्होंने एक-दूसरे से हाथ मिलाते हुए सरकार से यह पूछने का निर्णय किया कि विधायी परिषदों के अधिकांश सदस्य चुने जाएं।
- वे सरकार से जानना चाहते थे कि विधान परिषदों को पहले की तुलना में व्यापक शक्तियां दी जाएंगी।
- वे एक आम मांग करेंगे कि वायसराय की कार्यकारी परिषद में कम से कम आधी सीटें भारतीयों से भरी जाएं।
- इस प्रकार 1916 के इस सत्र ने कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच मैत्री को मजबूत किया और हिंदुओं और मुसलमानों के बीच सद्भावना को बढ़ावा दिया।
- पारित शस्त्र अधिनियम और प्रेस अधिनियम की घोर भर्त्सना की गई इसने लोगों और प्रेस को पूरी तरह से असहाय स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया।
होम रुल लीग आंदोलन 1916
- प्रथम विश्व युद्ध की प्रतिक्रिया स्वरुप भारतीयों द्वारा हॊम रुल आंदोलन किया गया।
- यह आयरिश होम रूल लीग की तर्ज पर आयोजित किया गया जो आक्रामक राजनीति की एक नईं प्रवृत्ति का प्रतिनिधित्व करता था।
- आयरिश थियोसोफिस्ट एनी बेसेंट ने आयरिश होम रूल लीग की तर्ज पर होम रूल आंदोलन करने का फैसला किया।
- तिलक 1914 में अपनी रिहाई के बाद नेतृत्व ग्रहण करने के लिए तैयार थे और उन्होंने अपनी वफादारी के लिए सरकार और नरमपंथियों को आश्वस्त किया कि वह आयरिश गृह शासकों की तरह प्रशासन में सुधार करेंगे तथा वे सरकार का विनाश नहीं करना चाहते।
- सन् 1915 के आरंभ में एनी बेसेंट ने श्वेत कालोनियों की तर्ज पर युद्ध के बाद भारत के लिए स्व-सरकार की मांग के लिए अभियान चलाया।
- उन्होंने अपने समाचार पत्र न्यू इंडिया और कॉमनवेल तथा सार्वजनिक बैठकों और सम्मेलनों के माध्यम से अभियान चलाया।
- दो होम रुल लीग की स्थापना की गई। प्रथम, अप्रैल, 1916 को पूना में बी. जी. तिलक द्वारा और दूसरा सितंबर, 1916 में मद्रास में श्रीमती एनी बेसेंट द्वारा।
- तिलक का आंदोलन महाराष्ट्र (बंबई को छोड़कर), कर्नाटक, मध्य भारत और बेरार पर केंद्रित था।
- एनी बेसेंट के आंदोलन ने शेष भारत (मुंबई सहित) को कवर किया।
- होम रुल लीग आंदोलन का मुख्य उद्देश्य था
- ब्रिटिश साम्राज्य के भीतर भारत के लिए स्व-सरकार प्राप्त करना।
- भाषाई राज्यों का गठन
- स्थानीय भाषाओं में शिक्षा
- दो लीगों ने एक-दूसरे के साथ मिलकर काम किया। इसके अलावा, होम रुल की मांग कांग्रेस और मुस्लिम लीग ने भी की।
- होम रुल आंदोलन में बड़ी संख्या में महिलाओं की सहभागिता ने राष्ट्रीय आंदोलन (स्वदेशी आंदोलन का पुनरुद्धार) में एक नईं जान डाल दी।
- एंग्लो इंडियन अर्थात् दक्षिण भारत के अधिकांश मुस्लिम और गैर-ब्राह्मणों ने इस आंदोलन में अपना सहयोग नहीं दिया क्योंकि उन्हें लगा कि होम रुल में हिंदू बहुमत मुख्यतः उच्च जाति का शासन होगा।
नोट → श्यामजी कृष्णवर्मा ने लंदन में होम रुल लीग की स्थापना की।
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