भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन (1885-1905)
भारत में राष्ट्रवाद का उदय
- सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक कारकों ने लोगों को अपनी राष्ट्रीय पहचान को परिभाषित और हासिल करने के लिए प्रेरित किया। लोगों ने उपनिवेशवाद के खिलाफ संघर्ष की प्रक्रिया में अपने भीतर एकता की खोज आरंभ की।
- औपनिवेशिक नियमों के अंतर्गत दमन करने की भावना ने लोगों के अंदर साझा बंधन स्थापित करने की प्रेरणा प्रदान की जिसके द्वारा विभिन्न समूहों को एक सूत्र में बांधा गया। प्रत्येक वर्ग और समूह ने उपनिवेशवाद के प्रभावों को अलग-अलग तरीके से महसूस किया।
- 19वीं सदी के सामाजिक और धार्मिक सुधार आंदोलनों ने भी राष्ट्रवाद की भावना को जागृत करने में योगदान दिया। स्वामी विवेकानंद, एनी बेसेंट, हेनरी डेरेज़ियो और कईं अन्य लोगों ने प्राचीन भारत की महिमा को पुनर्जीवित कर लोगों में उनके धर्म और संस्कृति के प्रति विश्वास पैदा किया तथा देशवासियों में अपनी मातृभूमि के लिए प्यार का संदेश दिया। राष्ट्रवाद के बौद्धिक और आध्यात्मिक पक्ष को बंकिम चंद्र चटर्जी, स्वामी दयानंद सरस्वती और अरबिंदो घोष जैसे लोगों ने अपनी आवाज दी। मातृभूमि के लिए बंकिम चंद्र का गीत, 'वंदे मातरम' देशभक्त राष्ट्रवादियों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बन गया। यह पीढ़ियों को अपना सर्वस्व व स्व-बलिदान करने के लिए प्रेरित करता था।
- 1857 के विद्रोह ने ब्रिटिश और भारतीयों के बीच एक तरह की स्थायी कड़वाहट और अविश्वास पैदा किया।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का उदय (1885)
- ब्रिटिश सरकार से सेवानिवृत्त सिविल सेवक एलन ऑक्टेवियन ह्यूम ने अखिल भारतीय संगठन बनाने के लिए पहल की।
- परिणामस्वरुप भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई और इसका पहला सत्र 1885 में बॉम्बे में आयोजित किया गया था।
- भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के इतिहास का अध्ययन तीन महत्वपूर्ण चरणों में किया जा सकता हैः
- नरमपंथी राष्ट्रवाद चरण (1885-1905) जब कांग्रेस ब्रिटिश शासन के प्रति वफादार रही।
- वर्ष 1906 - 1916 स्वदेशी आंदोलन, सैन्य राष्ट्रवाद का उदय और होम रूल आंदोलन का गवाह रहा। ब्रिटिशों की दमनकारी नीतियों ने कांग्रेस के भीतर बिपिन चंद्र पाल, बाल गंगाधर तिलक और लाला लजपत राय (लाल, बाल, पाल) समेत अरबिंदो घोष जैसे चरमपंथियों को जन्म दिया।
- 1917 से 1947 की अवधि को गांधीवादी काल के तौर पर जाना जाता है।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के महत्वपूर्ण सत्र
- कांग्रेस की बैठक प्रत्येक दिसंबर में होती थी। कांग्रेस की पहली बैठक पूना में आयोजित होने वाली थी लेकिन हैजा फैलने के कारण इसे बॉम्बे शिफ्ट कर दिया गया था।
- वायसराय लॉर्ड डफ़रिन के अनुमोदन से ह्यूम ने बॉम्बे में पहली बैठक का आयोजन किया।
- डब्ल्यू. चंद्र बनर्जी कांग्रेस के पहले अध्यक्ष थे।
- पहला सत्र 28-31 दिसंबर, 1885 में मुंबई में आयोजित किया गया और इसमें 72 प्रतिनिधियों ने भाग लिया था।
- महात्मा गांधी ने 1924 में कांग्रेस के बेलगाम सत्र की अध्यक्षता की।
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष श्रीमती एनी बेसेंट थीं।
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली भारतीय महिला अध्यक्ष श्रीमती सरोजिनी नायडू थीं।
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रथम अंग्रेज अध्यक्ष जॉर्ज यूल थे।
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पहले मुस्लिम अध्यक्ष बदरूद्दीन तैय्यबजी थे।
- भारत की आजादी के समय कांग्रेस के अध्यक्ष आचार्य जे. बी. कृपलानी थे।
वर्ष | स्थान | अध्यक्ष |
1885 | बाम्बे | डब्ल्यू. सी. बनर्जी |
1886 | कलकत्ता | दादाभाई नरौजी |
1893 | लाहौर | " |
1906 | कलकत्ता | " |
1887 | मद्रास | बदरूद्दीन तैय्यबजी (प्रथम मुस्लिम अध्यक्ष) |
1888 | इलाहाबाद | जार्ज यूल (प्रथम अंग्रेज अध्यक्ष) |
1889 | बाम्बे | सर विलियम वेडरबर्न |
1890 | कलकत्ता | सर फिरोज एस. मेहता |
1895, 1902 | पूना, अहमदाबाद | एस. एन. बनर्जी |
1905 | बनारस | जी. के. गोखले |
1907, 1908 | सूरत, मद्रास | रासबिहारी घोष |
1909 | लाहौर | एम. एम. मालवीय |
1916 | लखनऊ | ए. सी. मजुमदार (कांग्रेस का पुनर्मिलन (रि-यूनियन)) |
1917 | कलकत्ता | एनी बेसेंट (प्रथम महिला अध्यक्ष) |
1919 | अमृतसर | मोतीलाल नेहरू |
1920 | कलकत्ता (विशेष सत्र) | लाला लाजपत राय |
1921, 1922 | अहमदाबाद, गया | सी. आर. दास |
1923 | दिल्ली (विशेष सत्र) | अब्दुल कलाम आजाद (युवा अध्यक्ष) |
1924 | बेलगांव | एम. के. गाँधी |
1925 | कानपुर | सरीजनी नायडू (प्रथम भारतीय महिला अध्यक्ष) |
1928 | कलकत्ता | मोतीलाल नेहरु (प्रथम अखिल भारतीय युवा कांग्रेस का गठन) |
1929 | लाहौर | जे. एल. नेहरु (पूर्ण स्वराज संकल्प पारित किया गया) |
1931 | कराची | वल्लभभाई पटेल (यहां, मौलिक अधिकारों और राष्ट्रीय आर्थिक कार्यक्रम पर संकल्प पारित किया गया) |
1932, 1933 | दिल्ली, कलकत्ता | (सत्र प्रतिबंधित) |
1934 | बाम्बे | राजेन्द्र प्रसाद |
1936 | लखनऊ | जे. एल. नेहरु |
1937 | फैजपूर | जे. एल. नेहरु (गाँव में प्रथम सत्र) |
1938 | हरिपूरा | एस. सी. बोस (जे.एल. नेहरू के अधीन एक राष्ट्रीय योजनाबद्ध व्यवस्था की गई)। |
1939 | त्रिपुरी | एस.सी.बॉस फिर से निर्वाचित हुए लेकिन गांधी जी के विरोध के कारण उन्हें इस्तीफा देना पड़ा (गांधीजी ने डॉ. पट्टाभी सीतारामय्या का समर्थन किया)। राजेंद्र प्रसाद को उनकी जगह नियुक्त किया गया। |
1940 | रामगढ़ | अब्दुल कलाम आजाद |
1946 | मेरठ | आचार्य जे. बी. कृपलानी |
1948 | जयपुर | डॉ. पट्टाभी सीतारामय्या |
नरमपंथी राष्ट्रवाद
राष्ट्रीय आंदोलन के पहले चरण के दौरान अग्रणी व्यक्तित्व : ए.ओ. ह्यूम, डब्ल्यू. सी. बनर्जी, सुरेंद्र नाथ बनर्जी, दादाभाई नौरोजी, फिरोज शाह मेहता, गोपालकृष्ण गोखले, पंडित मदन मोहन मालवीय, बदरुद्दीन तैय्यबजी, जस्टिस रनाडे और जी. सुब्रमण्य अय्यर थे।
- सुरेन्द्रनाथ बनर्जी : को भारतीय बुर्क कहा जाता था। उन्होंने बंगाल विभाजन का दृढ़ता से विरोध किया। उन्होंने राजनीतिक सुधारों के लिए भारतीय संघ (1876) की स्थापना की। उन्होंने इंडियन नेशनल कॉन्फ्रेंस (1883) का संयोजन किया था जिसका विलय सन् 1886 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ किया गया।
- जी. सुब्रमण्य अय्यर ने मद्रास महाजन सभा के माध्यम से राष्ट्रवाद का प्रचार किया। उन्होंने हिंदू और स्वदेशीमित्रन की भी स्थापना की।
- दादाभाई नरौजी को भारत के ग्रांड ओल्ड मैन के नाम से जाना जाता था। उन्हें इंग्लैंड में भारत के अनौपचारिक राजदूत के तौर पर स्वीकृत किया जाता है। वह ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमन्स के सदस्य बनने वाले पहले भारतीय थे।
- गोपाल कृष्ण गोखले गांधी के राजनीतिक गुरु माने जाते थे। उन्होंने 1905 में सर्वेंट ऑफ इंडिया सोसाईटी की स्थापना की जिसमें भारतीय नागरिकों को देश के लिए कुर्बान होने का प्रशिक्षण दिया जाता था।
1885 और 1905 के बीच कांग्रेस के नेता नरमपंथी थे
- नरमपंथी नेताओं को ब्रिटिश न्याय और सद्भावना पर विश्वास था।
नरमपंथी नेताओं की मुख्य मांगे थीः
- विधायी परिषदों में विस्तार और सुधार।
- इंग्लैंड और भारत में एक साथ आयोजित होने वाली आई.सी.एस परीक्षा में उच्च पदों पर भारतीयों को अवसर प्रदान किया जाना।
- कार्यपालिका से न्यायपालिका को अलग करना तथा स्थानीय निकायों के लिए अधिक शक्तियां प्रदान करना।
- भू-राजस्व में कटौती, सेना पर खर्च में कमी और जमींदारों से किसानों की सुरक्षा, नमक कर और चीनी शुल्क का उन्मूलन।
- भाषण और अभिव्यक्ति तथा संघों को बनाने की स्वतंत्रता।
नरमपंथियों की पद्धति
- वे ब्रिटिश के प्रति वफादार थे। वे प्रेरणा और मार्गदर्शन हेतु इंग्लैंड का अनुसरण करते थे।
- नरमपंथियों ने अपनी मांगें पेश करने के लिए याचिकाओं, प्रस्तावों, बैठकों, पत्रक और पुस्तिकाओं, ज्ञापन और प्रतिनिधिमंडलों का इस्तेमाल किया।
- उन्होंने अपनी राजनीतिक गतिविधियों को शिक्षित वर्गों तक सीमित रखा।
- उनका उद्देश्य राजनीतिक अधिकार और स्तर द्वारा स्व-सरकार स्तर को हासिल करना था।
- कांग्रेस की मांग में वृद्धि के साथ ही ब्रिटिश सरकार उनसॆ विमुख हो गई। इन्होंने मुसलमानों को कांग्रेस से दूर रहने के लिए प्रोत्साहित किया।
- कांग्रेस की केवल एक मांग को, भारतीय परिषद अधिनियम 1892 के तहत विधायी परिषदों के विस्तार को, ब्रिटिश सरकार द्वारा मंजूरी प्रदान की गई थी|
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