Tuesday, January 12, 2021

PRE(IAS)Exam-Paper 1st-Sub Topic-Agriculture in India

भारत में कृषि सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में से एक है। देश के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि की हिस्सेदारी लगभग 18% है। श्रम एवं रोजगार मंत्रालय द्वारा प्रकाशित एक सर्वेक्षण के अनुसार, वर्ष 2014-15 में इस क्षेत्र में 45.7% कार्यशक्ति संलग्न है। भारत की विविध जलवायु परिस्थितियों के कारण यहाँ लगभग सभी तरह की फसलों की खेती की जाती है। 1970 के दशक में भारी उपज किस्म वाले बीजों के प्रयोग से शुरू हुई हरित क्रांति के बाद उत्पादन में भारी वृद्धि देखी गई है। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों से यह क्षेत्र संकटग्रस्त है जिसमें किसानों की आत्महत्या के मामले और उनकी घटती आमदनी आदि में वृद्धि देखी गई है। इस लेख में, हम भारत में कृषि के विभिन्न पहलुओं को देखेंगे। यह UPSC और State PCS Exams के लिए बहुत महत्वपूर्ण विषय है।

भारत में कृषि: संभावित; मुद्दे; आगे का रास्ता

भारतीय कृषि की क्षमता

  • भारतीय कृषि का उत्पादन 253.16 मिलियन टन से 280 मिलियन टन (खाद्यान्न) बढ़ गया है। यह विकासशील अवसंरचना से समर्थित 3.6% वार्षिक स्थिर वृद्धि दर पर बनी हुई है।
  • देश में बड़ी आबादी होने के कारण उपज के लिए मांग पैदा होती है। साथ ही, शहरी और ग्रामीण आय में वृद्धि से गुणवत्ता आधारित मांग में वृद्धि हुई है।
  • नए बाजारों और रणनीतिक संधियों के कारण बाहरी मांग में भी वृद्धि हो रही है। भारत कृषि उत्पादों के 15 शीर्ष निर्यात देशों में शामिल होता है। जिसमें पिछले दशक के मुकाबले 16.45% वृद्धि हुई है और यह बढ़कर 2018 में 38 मिलियन अमेरिकी डॉलर पर पहुंच गया है।
  • शहरी आबादी बढ़ने के साथ-साथ बदलती जीवनशैली के कारण इस क्षेत्र में भी बदलाव आ रहे हैं जो अब खाद्यान्न से दालों, फलों, सब्जियों और मवेशी उत्पादों की तरफ बढ़ रहा है। यह उपज और कच्चे माल में गुणवत्ता बढ़ाने तथा खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के विकास में सहायता करता है।
  • इस क्षेत्र में अवसरों की संख्या बढ़ रही है। विकासशील जीएम फसलों, संकरित बीजों और उवर्रकों के साथ जैवतकनीक में वैज्ञानिक अविष्कारों की संख्या बढ़ रही है।
  • विश्वसनीय भंडारण क्षमता, अवसंरचना विकास जैसे कोल्ड स्टोरेज, माल-ढुलाई आदि।
  • कृषि भूमि की अधिकता के कारण एक प्रतिस्पर्धात्मक लाभ भी है जिससे यह मसालों, जूट और दालों में अग्रणी उत्पादक है तथा गेंहू, धान, फल और सब्जियों के उत्पादन में दूसरे स्थान पर है।
  • सरकार की तरफ से नीतिगत मदद और अनुदान में वृद्धि हो रही है।

हालांकि, कई विरोधाभासों और समस्याओं की वजह से यह अभी भी संकट में है, जोकि एच्छिक वृद्धि को रोक रही है और परिणाण और भी हानिकारक होते जा रहे हैं।

भारतीय कृषि की समस्याएँ:

  • भारतीय कृषि की प्रति हेक्टेयर उत्पादन क्षमता यूरोप, चीन और अमेरिका जैसे देशों की तुलना में बहुत कम है। इसका कारण गरीबी, खराब सिंचाई सुविधा (केवल 35% क्षेत्र पर ही उपलब्ध), मानसून पर अधिक निर्भरता, खेत का आकार बहुत कम और उसका निंरतर घटता क्षेत्रफल (1.16 हेक्टेयर) इत्यादि हैं।
  • सरकार की नीतियों में कई विरोधाभास रहे हैं। ये किसानों की तुलना में उपभोक्ताओं के लिए अधिक फायदेमंद साबित हुई हैं। कृषि, जल, वाणिज्य और वित्त के बीच अंतरविभागीय सामन्जस्य पूरी तरह से गायब रहा है।
  • कृषि उपज बाजार समिति (APMC) अधिनियम के मौजूद होने पर, मध्यस्थों और गैर-कानूनी व्यापारियों की संख्या बहुत बढ़ गई है। किसान अपनी फसल की वास्तविक कीमत का आकलन करने में असमर्थ हैं वहीं उपभोक्ताओं को अधिक से अधिक कीमतें चुकानी पड़ती हैं। कार्टेलाइज़ेशन बढ़ता जा रहा है और जो फसल की कीमतों को नीचे बनाए रखता है।
  • कृषि पर अशोक दालवाली समिति की रिपोर्ट से स्पष्ट होता है कि खेती में निवेश कीमतें बहुत बढ़ गई हैं, जबकि आमदनी वही रही है और पिछले कुछ वर्षों में घटती भी जा रही है। इससे किसानों की क्रय शक्ति कम हुई है और परिणामस्वरूप उत्पादकता भी कम हो गयी है।
  • हरित क्रांति के कारण खड़ी हुई समस्याओं को अब देखा जा सकता है। तकनीकी के दुरुपयोग ने कृषि क्षेत्र को बर्बाद कर दिया है। उवर्रकों, भूजल के अधिकाधिक उपयोग ने भूमि और मृदा दोनों को नुकसान पहुंचाया है।
  • बहुत निम्न बीज प्रतिस्थापन्न अनुपात, बीजों की खराब गुणवत्ता, बीजों की बढ़ती लागत, खेत में उत्पादित बीजों के अवैज्ञानिक प्रयोग ने भी उत्पादकता को प्रभावित किया है।
  • भारतीय कृषि में यांत्रिकी का प्रयोग बहुत सीमित है जिसने न केवल उत्पादकता को घटाया है बल्कि श्रमशक्ति का भी काफी नुकसान पहुंचाया है।
  • किसान अभी भी पैसों की मदद के लिए अनौपचारिक स्रोतों जैसे साहूकारों पर निर्भर है। लगभग 40% उधार इन्हीं स्रोतों से प्राप्त होता है।
  • न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) संरचना भी अप्रभावी बनी हुई है। इसने फसलों के पैटर्न को भी खराब किया है। शांता कुमार समिति की रिपोर्ट के अनुसार भी, केवल 6% किसानों को ही MSP का लाभ मिलता है, जबकि 94 फीसदी किसान आज भी परंपरागत बाजार पर आश्रित बने हुए हैं। कुछ किसानों की पैदावार को खराब गुणवत्ता के कारण मना कर दिया जाता है तो कुछ किसान पर्याप्त भंडारण अथवा लॉजिस्टिक सुविधा के अभाव में अपनी पैदावार को सरकार को नहीं बेच पाते हैं।
  • आज जलवायु परिवर्तन दुनियाभर में कृषि के लिए एक चुनौती बन गया है। भारत जैसी अर्थव्यवस्थाएँ कृषि पर अधिक निर्भर होने के कारण इस परिवर्तन से बहुत ज्यादा प्रभावित हैं। अक्सर आने वाली बाढ़ें, चक्रवात, तापमान भिन्नता, गैर-मौसमी बरसात, ओलों की वर्षा और आंधी के कारण कीड़ों की हमला, फसल नुकसाने और मृदा क्षरण जैसी समस्याएँ खड़ी हो गई हैं।
  • पूरी मूल्य श्रृंखला में सक्षम अवसंरचना पर्याप्त नहीं है। बाजार, शीत भंडारण, गोदाम जैसे अगली और पिछली कड़ियाँ दोनों बढ़ते उत्पादन के साथ-साथ विकसित नहीं हुई है। इसके कारण उपज की खराबी, खराब मूल्य निर्धारित, संकटग्रस्त बिक्री आदि समस्याएँ पैदा हुई हैं। साथ ही, खराब सड़क संपर्क के कारण गांवों का बाजार से संबंध नहीं हो पाया है।
  • कृषि क्षेत्र में अनुसंधान और विकास 1% के ऊपर या नीचे स्थिर बना हुआ है।
  • यह क्षेत्र सस्ते आयात, घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाजार दोनों में तेजी से गिरती कीमतों, हस्तक्षेपकारी नीतियों और सरकार द्वारा बाधाएँ, भविष्य के विपणन और स्टॉकहोल्डिंग पर प्रतिबंध किसानों के दुखों में और वृद्धि कर रहे हैं।

कुछ उपाय

  • सरकार को चालू परियोजनाओं को पूरा करके सिंचाई सुविधा सुधारने की जरूरत है। नए वर्षाजल संरक्षण विधियों को अपनाने की आवश्यकता है। छिड़काव सिंचाई, बूंद-बूंद सिंचाई, सघन कृषि के लिए किसानों को सहायता दिए जाने की जरूरत है। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY), हर खेत को पानी जैसी योजनाओं को तीव्र गति से लागू करने की जरूरत है।
  • किसानों को प्रशिक्षित करना चाहिए कि अपने इनपुट का प्रभावी इस्तेमाल कैसे करें और कैसे उसके अधिकाधिक उपयोग से उत्पादकता गिर सकती है। मृदा स्वास्थ्य कार्ड, नीम लेपिट यूरिया जैसी योजनाओं का व्यापक स्तर पर लागू करना चाहिए। PUSA, किसान सुविधा जैसी एप्लीकेशन की पहुंच को व्यापक बनाना चाहिए। साधारण सेवा केंद्रों में ही कृषि केंद्रों को खोला जा सकता है।
  • मशीनों की मदद से उत्पादकता बढ़ाने के लिए खेतों का एकीकरण किया जाना बहुत आवश्यक है। यह कार्य उचित भूमि शीर्षक देकर और स्वचालित रूप से रिकॉर्डों को व्यवस्थित करके किया जा सकता है। न्यूनतम हेक्टेयर भूमि वाले किसानों के समूह को आर्थिक लाभ प्रदान किया जा सकता है। किसानों के समूह के आधार पर परंपरागत कृषि योजना इस दिशा में एक अच्छा कदम है।
  • किसानों को पर्याप्त क्षतिपूर्ति और उनकी लाभप्रदाता बढ़ाने में फसल उपरांत हानि को कम करने का बड़ा महत्व हो सकता है। उचित अगली और पिछली अवसरंचना के साथ अधिक से अधिक खाद्य प्रसंस्करण उद्योग और फूड पार्क को विकसित किया जाना चाहिए। योजना में प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना मेगा फूड पार्क के विकास को सुनिश्चित करती है।
  • हर राज्य को देश में सभी कृषि मंडियों का एकीकरण करने के लिए eNAM को अपनाना चाहिए।
  • सभी किसानों को प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना जैसी योजनाओं के माध्यम से ऋण सुविधाओं और बीमा जैसे वित्तीय समाधान प्रदान करने चाहिए।
  • नीली और श्वेत क्रांति के माध्यम से सहयोगी गतिविधियों को बढ़ावा देना चाहिए जो संकट के समय में ग्रामीण आय में मददगार हो सकता है और राजस्व में भी वृद्धि कर सकता है।

अशोक दालवानी समिति, शांता कुमार समिति जैसी कई समितियों ने कई अन्य समाधान भी प्रस्तुत किए हैं और उन्हें प्राथमिकता के साथ लागू करना चाहिए। नीति निर्धारण में छोटे किसानों को हिस्सेदार बनाया जाना चाहिए और उनके सुझावों पर गौर करना चाहिए। देश की बढ़ती आबादी और बदलती मांग के साथ खाद्य सुरक्षा की जरूरत हमें इस बारे में सोचने पर विवश करती है। हम किसी भी सूरत में इस क्षेत्र को दरकिनार नहीं कर सकते हैं। जैसा कि एम. एस. स्वामीनाथन ने कहा है, “यदि कृषि हारती है, तो बाकि सबकुछ हार जाता है।”


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