Wednesday, January 20, 2021

PRE(IAS)Exam-Paper 1st-Sub Topic- World Trade Organisation: Structure, Objectives, Agreements, Subsidies

विश्‍व व्यापार संगठनसंरचनाउद्देश्यसमझौतेआर्थिक सहायता

परिचय

  • WTO एक अंतर्राष्‍ट्रीय संगठन है, जिसे वर्ष 1995 में मारकेश समझौते के तहत सामान्‍य शुल्‍क एवं व्‍यापार समझौते (GATT) के स्थान पर स्‍थापित किया गया था।
  • यह एकमात्र वैश्‍विक अंतर्राष्‍ट्रीय संगठन है जो राष्‍ट्रों के बीच अंतर्राष्‍ट्रीय व्यापार से संबंधित है।
  • इसका मुख्यालय स्विट्जरलैंड के जिनेवा में स्‍थित है।
  • वर्तमान में, विश्‍व व्यापार संगठन के 164 सदस्य देश हैं और भारत विश्‍व व्यापार संगठन का संस्थापक सदस्य है।
  • वर्तमान में, विश्‍व व्यापार संगठन के प्रमुख (महानिदेशक) रॉबर्टो अजेवेडो हैं।

 

विश्‍व व्यापार संगठन का विकास

  • द्वितीय विश्‍व युद्ध की समाप्‍ति के बाद, आर्थिक, सामाजिक और तकनीकी समस्याओं का मुकाबला करने में देशों के बीच सहयोग को आगे बढ़ाने के लिए विभिन्न अंतर्राष्‍ट्रीय संगठनों की स्‍थापना की गई थी।
  • सभी देशों के बीच वैश्‍विक अर्थव्यवस्था और निर्बाध व्यापार के विकास के लिए, अंतर्राष्‍ट्रीय व्यापार को विनियमित करने हेतु एक अंतर्राष्‍ट्रीय संगठन की अत्‍यंत आवश्यकता महसूस की गई।
  • वर्ष 1945 में ब्रेटन वुड्स कॉन्फ्रेंस (दो ब्रेटन वुड संस्थानों – अंतर्राष्‍ट्रीय मुद्रा कोष और विश्‍व बैंक) नामक एक सम्मेलन अंतर्राष्‍ट्रीय व्यापार संगठन (ITO) के गठन के लिए आयोजित किया गया था, जो अंतत: अमेरिका और कई अन्‍य प्रमुख देशों से अनुमोदन न मिलने के कारण स्‍थापित नहीं किया जा सका।
  • चूंकि द्वितीय विश्‍व युद्ध के बाद अमेरिका विश्‍व शक्‍ति बन रहा था, इसलिए अमेरिका के बिना ITO का सृजन निरर्थक था।
  • इस बीच, समझौता वार्ता के माध्यम से, वर्ष 1947 में एक बहुपक्षीय समझौता संपन्न हुआ जिसे सामान्‍य शुल्‍क एवं व्‍यापार समझौते (GATT) के नाम से जाना जाता है।
  • व्यापार पर प्रतिवाद के लिए निश्‍चित समयांतराल पर GATT के विभिन्न सम्मेलन आयोजित किए गए। अंत में, वर्ष 1986 से 1994 तक आयोजित उरुग्वे सम्मेलन दौर के दौरान, WTO की स्‍थापना के समझौते को अंततः मारकेश समझौते के माध्यम से अंगीकृत किया गया।
  • भारत वर्ष 1948 से GATT का सदस्य और विश्‍व व्यापार संगठन (WTO) का संस्थापक सदस्य है। चीन वर्ष 2001 में और रूस वर्ष 2012 में WTO में शामिल हुए।

 

विश्‍व व्यापार संगठन के उद्देश्य

  • अंतर्राष्‍ट्रीय व्यापार के लिए नियम बनाना और उन्‍हें लागू करना।
  • व्यापार उदारीकरण बढ़ाने में समझौता वार्ता और निगरानी के लिए एक मंच प्रदान करना।
  • विवादों के निपटान के लिए एक मंच प्रदान करना।
  • तकनीकी सहयोग और प्रशिक्षण के माध्यम से विश्‍व व्यापार संगठन के नियमों और अनुशासन को समायोजित करने के लिए पारगमन में विकासशील, अल्‍प विकसित और निम्‍न आय वाले देशों को सहायता प्रदान करना।
  • वैश्‍विक आर्थिक प्रबंधन में शामिल अन्य प्रमुख आर्थिक संस्थानों (जैसे संयुक्‍त राष्‍ट्र, विश्‍व बैंक, IMF आदि) के साथ सहयोग करना।

 

विश्‍व व्यापार संगठन की संरचना

विश्‍व व्यापार संगठन की मूल संरचना इस प्रकार है: -

  • मंत्रिस्तरीय सम्मेलन  यह विश्‍व व्यापार संगठन की निर्णय लेने वाली सर्वोच्च संस्‍था है। इसकी बैठक आमतौर पर प्रत्‍येक दो वर्ष के बाद होती है। यह विश्‍व व्यापार संगठन के सभी सदस्यों को एक मंच पर लाती है।
  • प्रधान परिषद (जनरल काउंसिल) – यह सभी सदस्य राष्‍ट्रों के प्रतिनिधियों से बनी है। यह विश्‍व व्यापार संगठन के दिन-प्रतिदिन के व्यवसाय और प्रबंधन के लिए उत्‍तरदायी है।
  • अन्य परिषद/संस्‍थाएं - गुड्स काउंसिल, सर्विस काउंसिल, व्यापार नीति समीक्षा संस्‍था, विवाद निपटान संस्‍था आदि जैसी कई अन्य संस्‍थाएं हैं जो अन्य विशिष्‍ट मुद्दों पर कार्य करती हैं।

 

विश्‍व व्यापार संगठन के सिद्धांत

विश्‍व व्यापार संगठन के समझौते निम्नलिखित प्राथमिक और आधारभूत सिद्धांतों पर आधारित हैं: -

  • गैर पक्षपाती
  • मोस्‍ट फेवर्ड नेशन – सभी राष्‍ट्रों के साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिए। कोई भी देश किसी अन्य सदस्य देश को कोई विशेष सहायता नहीं दे सकता है। उदाहरण के लिए, यदि एक देश दूसरे देश के लिए शुल्‍क कम करता है तो उसे अन्य सभी सदस्य देशों के लिए भी कम करना होगा।
  • सर्व-साधारण व्‍यवहार (नेशनल ट्रीटमेंट)- सभी उत्पादों के लिए एक समान व्‍यवहार, चाहे वह स्थानीय हो या विदेशी। स्थानीय के साथ-साथ अन्य देशों से आयातित उत्पादों के साथ उचित और समान व्‍यवहार किया जाता है।
  • पारस्परिकता - किसी अन्य देश द्वारा आयात शुल्क और अन्य व्यापार बाधाओं को कम करने के बदले में समान रियायत प्रदान करना।
  • अनिवार्य और प्रवर्तनीय प्रतिबद्धताओं के माध्यम से पूर्वानुमान  व्यापार की परिस्‍थिति को स्थिर और पूर्वानुमानित बनाना।
  • पारदर्शिता  विश्‍व व्यापार संगठन के सदस्यों को अपने व्यापार नियम जारी करने और व्यापार नीतियों में परिवर्तन के लिए विश्‍व व्यापार संगठन को सूचित करने की आवश्यकता होती है।
  • विकास एवं आर्थिक सुधारों को प्रोत्साहित करना  WTO प्रणाली द्वारा विकास में योगदान देने के लिए सभी संभव प्रयास किए जाते हैं।

 

विश्‍व व्यापार संगठन के प्रमुख व्यापार समझौते

विश्‍व व्यापार संगठन के तहत हुए महत्वपूर्ण व्यापार समझौते इस प्रकार हैं -

  • कृषि पर समझौता (AoA),
  • बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार-संबंधित पक्षों पर समझौता (TRIPS),
  • स्‍वच्‍छता और पादप स्‍वच्‍छता संबंधी अनुप्रयोगों पर समझौता (SPS),
  • व्यापार में तकनीकी बाधाओं पर समझौता (TBT),
  • व्यापार-संबद्ध निवेश उपायों पर समझौता (TRIMS),
  • सेवा व्‍यापार पर सामान्य समझौता (GATS) आदि

 

कृषि पर समझौता (AoA)

  • यह समझौता GATT के उरुग्वे दौर के दौरान किया गया और यह वर्ष 1995 में विश्‍व व्यापार संगठन की स्थापना के साथ संपन्न हुआ।
  • AoA के माध्यम से, विश्‍व व्यापार संगठन का उद्देश्य कृषि क्षेत्र में एक निष्पक्ष और बाजार संचालित प्रणाली के साथ व्यापार में सुधार करना है।
  • यह समझौता सरकारों को अपनी ग्रामीण अर्थव्यवस्थाओं को सहायता प्रदान करने की अनुमति देता है, लेकिन केवल उन्हीं नीतियों को मंजूर करता है जो न्‍यूनतर व्यापार 'विकृतियां' उत्‍पन्‍न करती हैं।
  • इस समझौते ने निम्नलिखित तीन कृषि आपूर्ति श्रृंखला प्रणाली पर सभी सदस्य राष्‍ट्रों की प्रतिबद्धताएं निर्धारित की हैं: -

 

  1. बाजार पहुंच में सुधार- यह सदस्य राष्‍ट्रों द्वारा विभिन्न व्यापार बाधाओं को दूर करके की जा सकती है। सदस्‍य राष्‍ट्रों के बीच शुल्‍क निर्धारित करके और समय-समय पर मुक्‍त व्यापार को प्रोत्‍साहन देकर अंततः बाजार पहुंच में वृद्धि होगी।

 

  1. घरेलू समर्थन- यह मूल रूप से घरेलू समर्थन (सब्‍सिडी) में कमी के लिए प्रेरित करती है जो मुक्‍त व्यापार और उचित कीमतों को कम करती है। यह इस धारणा पर आधारित है कि सभी सब्सिडी एक ही सीमा तक व्यापार को अव्‍यवस्‍थित नहीं करती हैं। इस समझौते के तहत, सब्सिडी को निम्नलिखित तीन बॉक्स में वर्गीकृत किया जा सकता है -

 

  • ग्रीन बॉक्स  वे सभी सब्सिडी जो व्यापार को विकृत नहीं करती हैं या न्यूनतम विरूपण उत्‍पन्‍न करती हैं, ग्रीन बॉक्स के अंतर्गत आती हैं।
    उदाहरण- सभी सरकारी सेवाएं जैसे अनुसंधान, रोग नियंत्रण और अवसंरचना और खाद्य सुरक्षा। इसके अलावा, किसानों को दी जाने वाली वे सभी सब्‍सिडी जो अंतर्राष्‍ट्रीय व्यापार को प्रत्‍यक्ष रूप से प्रभावित नहीं करती हैं वे भी ग्रीन बॉक्स के अंतर्गत आती हैं।

 

  • एम्बर बॉक्स – वे सभी घरेलू सब्सिडी या समर्थन जो उत्पादन और व्यापार दोनों को विकृत कर सकते हैं (कुछ अपवादों के साथ) एम्बर बॉक्स के अंतर्गत आती हैं। समर्थन मूल्य के उपाय इस बॉक्स के अंतर्गत आते हैं। इसका अपवाद विकसित देशों के लिए कृषि उत्पादन की 5% और विकासशील देशों के लिए कृषि उत्‍पादन की 10% तक की सब्सिडी स्वीकार करने का प्रावधान है।

 

  • ब्लू बॉक्स – वे सभी एम्बर बॉक्स सब्सिडी जो उत्पादन को सीमित करते हैं, ब्लू बॉक्स के अंतर्गत आती है। इसे बिना सीमा के तब तक बढ़ाया जा सकता है जब तक सब्सिडी उत्पादन-प्रतिबंधक योजनाओं से जुड़ी हो।

 

  1. निर्यात सब्सिडी – वे सभी सब्सिडी जो कृषि उत्पादों के निर्यात को सस्ता बनाती हैं, निर्यात सब्सिडी कहलाती हैं। इन्हें मूल रूप से व्यापार-विकृत प्रभाव माना जाता है। यह समझौता सदस्य राष्‍ट्रों द्वारा कृषि उत्पादों के लिए निर्यात सब्सिडी के उपयोग पर प्रतिबंध लगाता है।

 

भारत की व्यापार संबंधी चिंताएं और WTO

WTO में व्यापार से संबंधित भारत की चिंताएं इस प्रकार हैं:

  • स्टील और एल्यूमीनियम पर शुल्क – हाल ही में अमेरिकी सरकार ने विभिन्न व्यापार साझीदारों के खिलाफ एल्यूमीनियम पर 10% और स्टील पर 25% शुल्‍क लगाया है। भारत चाहता है कि इसे हटा दिया जाए अन्‍यथा वह WTO में इस मुद्दे को उठाएगा।

 

  • निर्यात सब्सिडी का मुद्दा  हाल ही में अमेरिका ने भारत को WTO में घसीटा और SEZ, MEIS, EPCG आदि के रूप में भारतीय कंपनियों को प्रदान की जाने वाली निर्यात सब्सिडी व्यवस्था पर चिंता जताई। अमेरिका ने तर्क दिया कि भारत की प्रति व्यक्‍ति आय 1000 डॉलर से अधिक हो गई है, इसलिए भारत ASCM के अनुसार निर्यात सब्सिडी व्‍यवस्‍था का उपयोग नहीं कर सकता है।

 

  • कृषि सब्सिडी  सब्सिडी का वर्तमान कोटा वर्ष 1986-88 के मूल्य स्तर पर आधारित है। वर्तमान में न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) अवधारणा, जो भारत में किसानों को सब्सिडी प्रदान करती है, एम्बर बॉक्स के अंतर्गत आती है। यह भारत की खाद्य सुरक्षा योजनाओं को प्रत्‍यक्ष रूप से प्रभावित कर सकती है। भारत चाहता है कि यह वर्तमान मूल्य स्तर पर होनी चाहिए और एम्बर बॉक्स अवधारणा को इससे दूर किया जाना चाहिए। हालांकि, बाली सम्मेलन के दौरान मंजूर किए गए एक 'शांति परिच्‍छेद' के माध्यम से भारत फिलहाल अपनी PDS योजनाओं के साथ चल रहा है। लेकिन विकसित सदस्य राष्‍ट्र इस समस्या के स्थायी समाधान के लिए कोई कदम नहीं उठा रहे हैं।

 

  • विशेष और अंतरीय व्‍यवहार (SDT) - दोहा दौर के दौरान, सदस्य राष्‍ट्र विकासशील देशों के साथ अनुकूल व्‍यवहार करने पर सहमत हुए। हालांकि, विकसित देश भारत और चीन जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं को इस प्रावधान के योग्य मानने से इनकार कर रहे हैं।

 

  • बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित मुद्दे – दवाओं की अनिवार्य लाइसेंसिंग के मुद्दों को TRIPS के माध्यम से हल किया गया है। यद्यपि, विकसित देश TRIPS + प्रतिबद्धताओं पर जोर देने का प्रयास कर रहे हैं।

 

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