Monday, January 11, 2021

PRE(IAS)Exam-Paper 1st-Sub Topic-Indian Climate Notes: Monsoon, El Nino Effect, Koeppen's Classification

 

भारतीय जलवायु नोट्स- मानसून, एल नीनो प्रभाव, कोप्पेन जलवायु वर्गीकरण

जलवायु और मौसम

  • जलवायु को किसी एक क्षेत्र में अधिक से अधिक वर्षों तक मौसम की समग्र औसत स्थिति के रूप में परिभाषित किया जाता है।
  • मौसम को किसी विशेष समय पर वायुमंडलीय विशेषताओं के रूप में परिभाषित किया जाता है।
  • जलवायु और मौसम की माप के घटक समान होते हैं, पर्यवेक्षण अवधि दोनों के लिए भिन्‍न होती है और जलवायु किसी विशेष भू-भाग या क्षेत्र के वातावरण की सामान्य विशेषताओं को दर्शाती है।
  • वायुमंडलीय परिस्थितियों के घटकों के साथ उनकी विशेषताएं किसी क्षेत्र के एक वर्ष के विभिन्न मौसमों को दर्शाती हैं।

भारतीय जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक

  • अक्षांश  अक्षांश सतह पर पड़ने वाली सूर्य की किरणों की मात्रा निर्धारित करता है। वायु का तापमान भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर जाने पर कम होता जाता है। चूंकि कर्क रेखा भारत को लगभग समान रूप से विभाजित करती है, इसलिए भारत उष्णकटिबंधीय और उपोष्‍णकटिबंधीय दोनों जलवायु का अनुभव करता है।
  • ऊंचाई (उन्‍नतांश)  वायु का घनत्व कम होने के कारण सतह से अधिक ऊंचाई तक जाने पर तापमान घटता है। चूंकि भारत में तटीय क्षेत्रों से लेकर विशाल पहाड़ों तक विविध प्रकार के परिदृश्य हैं इसलिए देश के विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न जलवायु पाई जाती है। विशाल पहाड़ भी वायु अवरोधक का कार्य करके मौसम को प्रभावित करते हैं।
  • ब और पवन प्रणाली- तापमान और वर्षा का विस्‍तार किसी क्षेत्र के दबाव और पवन प्रणाली पर निर्भर करता है। दबाव और वायु के प्रमुख घटक हैं - दबाव और सतही पवनें, उच्‍च वायु परिसंचरण और चक्रवात।
  • समुद्र से दूरी  समुद्र तटवर्ती क्षेत्रों में जलवायु को प्रभावित करता है, इस प्रकार तटीय क्षेत्रों में जलवायु सामान्‍य और आंतरिक भूमि में जलवायु समशीतोष्‍ण होती है।
  • राहत  तापमान, वायु दाब, पवन की दिशा और गति तथा अंत में वर्षा वितरण के साथ जलवायु पर भौतिक विशेषताओं का बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है।

मौसम तंत्र

शीतकालीन मौसम

  • हिमालय के उत्‍तर से ठंडी शुष्क पवनें, विशेषकर मध्य और पश्‍चिमी एशिया से देश के उत्‍तर और उत्‍तर-पश्‍चिमी क्षेत्रों की सतह पर व्यापारिक पवनों के संपर्क में आती है।
  • ऊपरी क्षोभमंडल के ऊपर चलने वाली जेट स्ट्रीम का भारत के मौसम पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। शीतकाल में जेट स्ट्रीम हिमालय के दक्षिण में गंगा के मैदान पर चलती है और उनके अन्य भाग तिब्बत के पठार के उत्‍तर में चलती हैं।
  • जेट स्ट्रीम - यह क्षोभमंडल में अधिक ऊंचाई पर पश्‍चिम की ओर चलने वाली पवनें हैं। इसमें तेज गति से घुमावदार पथ में चलने की विशेषता है।
  • पश्‍चिमी जेट स्ट्रीम पश्‍चिम में चक्रवात लाती हैं, जो भूमध्य सागर में भारत के उत्‍तर-पश्‍चिमी भाग में उत्‍पन्‍न होती हैं। इनमें रात के तापमान में वृद्धि और शीतकालीन वर्षा लाने की विशेषताएं हैं जो रबी की फसलों की कृषि में सहायता प्रदान करती हैं।

Source: NCERT

ग्रीष्‍मकालीन मौसम

  • ग्रीष्‍मकाल के प्रारंभ में वायु परिसंचरण सतह और वायुमंडल दोनों स्‍तरों में विपरीत हो जाता है।
  • अंतरा-उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (आई.टी.सी.जेड) – जो कि निम्‍न दाब वाला क्षेत्र है जिसमें उत्‍तर-पूर्व और दक्षिण-पूर्व व्यापारिक पवनें अभिसरित होती हैं। यह सूर्य के दृश्‍य चलन के साथ उत्‍तर की ओर जाता है और हिमालय के दक्षिण और इसके समानांतर स्थित है।
  • प्रायद्वीप के दक्षिणी भाग में, पूर्वी जेट स्ट्रीम चलती है जो भारत में उष्णकटिबंधीय चक्रवात / विषाद लाती हैं।

Source: NCERT

भारतीय मानसून

  • तापमान, वर्षा, आर्द्रता, आदि जैसे विभिन्न मानकों के आधार पर, ग्रह को विभिन्न जलवायु क्षेत्रों में बांटा गया है। उदाहरण: भूमध्‍यरेखीय जलवायु, साइबेरियाई, आदि।
  • भारत को मानसून प्रकार के मौसम क्षेत्र में रखा गया है क्योंकि यह दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में जलवायु का स्‍वरूप है।
  • मानसून के मौसम का वर्णन किसी वर्ष में हवाओं के मौसमी परिवर्तन के रूप में अच्छी तरह से किया जाता है। ग्रीष्‍मकाल में पवनें समुद्र से स्‍थल की ओर चलती हैं और शीतकाल में यह घटना उलट जाती है अर्थात स्‍थल से समुद्र की ओर।
  • मानसून का अनुभव पूरे देश में किया जाता है लेकिन वर्षा, पवन के रूप, तापमान, आर्द्रता और शुष्‍कता के स्‍तर के आधार पर क्षेत्रीय विविधता महसूस की जाती है।
  • मानसून पैटर्न तभी आंशिक रूप से समझा जाता है जब इसका वैश्‍विक स्तर पर अध्ययन किया जाए। दक्षिण एशिया में वर्षा का कारण और वितरण मानसून को समझने में कम जटिल बनाता है।
  • ग्रीष्‍मकाल में देश में दक्षिण-पश्‍चिम मानसून और शीतकाल में यह उत्‍तर-पूर्व मानसून होता है।
  • भारतीय मानसून की उत्‍पत्‍ति और स्‍वरूप के लिए उत्‍तरदायी विभिन्न कारक निम्‍नलिखित हैं:
  • स्‍थल और जल का अंतरीय तापन और शीतलन – ग्रीष्‍मकाल में स्‍थल समुद्र की तुलना में शीघ्र ही गर्म हो जाता है, जिससे महाद्वीपीय क्षेत्र में अत्‍यधिक तीव्र दबाव उत्‍पन्‍न होता है और उच्च दाब वाले समुद्र से पवनें स्‍थल की ओर चलती हैं। यह शीतकालीन मौसम में विपरीत होता है।
  • आई.टी.सी.जेड – सूर्य के स्‍थान परिवर्तन के साथ आई.टी.सी.जेड के दृश्‍य चलन का भारतीय मानसून पर अधिक प्रभाव पड़ता है। ग्रीष्‍मकाल के दौरान यह गंगा के मैदानी इलाकों में उत्‍तर की ओर स्थानांतरित हो जाता है, जिसके फलस्‍वरूप अत्‍यधिक तीव्र दबाव उत्‍पन्‍न होता है जिसे मानसून कहते हैं – इससे क्षेत्र में भारी वर्षा होती है।
  • ग्रीष्‍मकाल के दौरान तिब्बत के पठार के अत्‍यधिक गर्म होने से शक्‍तिशाली ऊर्ध्व वायु धाराएं और कम दबाव उत्‍पन्‍न होता है।
  • जेट स्‍ट्रीम की उपस्थिति: पश्‍चिमी जेट स्‍ट्रीम हिमालय के उत्‍तर की ओर और पूर्वी जेट स्‍ट्रीम प्रायद्वीपीय पठार में।
  • दक्षिणी हिंद महासागर (मेडागास्कर के पूर्व में) में उच्च दाब वाले क्षेत्र का मानसून पर बहुत प्रभाव पड़ता है।
  • अल नीनो / ला नीना – प्रशांत महासागर में दबाव में असामान्‍य परिवर्तन की स्थिति एशिया की ओर चलने वाली मानसून पवनों की तीव्रता को प्रभावित करती है।

मानसून की प्रगति

मानसून का प्रारंभ

  • स्‍थल और जल के अंतरीय तापन के कारण, ग्रीष्‍मकाल की शुरुआत में सूर्य-महाद्वीप में निम्‍न दाब वाला क्षेत्र उत्‍पन्‍न हो जाता है, विशेषकर देश के उत्‍तर-पश्‍चिम भाग में।
  • दक्षिण-पूर्व व्यापारिक पवनें इस निम्‍न दाब वाले केंद्र की ओर आकर्षित होती हैं और आई.टी.सी.जेड की उपस्थिति के कारण यह भूमध्य रेखा को पार करती है और भारतीय उपमहाद्वीप की ओर 40 से 60 डिग्री पूर्व के बीच मुड़ जाती है और भारत में दक्षिण-पश्‍चिम मानसूनी पवनों के रूप में प्रवेश करती हैं।
  • 1 जून तक दक्षिण-पश्‍चिम मानसून केरल में स्थापित हो जाता है और देश के भीतरी भाग की ओर आगे बढ़ता है।
  • मानसून प्रस्फोट – मानसून आने पर वर्षा अचानक बढ़ जाती है और इस वर्षा का पूर्व मानसून वर्षा के बाद कुछ दिनों तक रहना मानसून में प्रस्‍फोट कहलाता है। मानसून प्रस्‍फोट पूर्वी जेट स्ट्रीम के कारण होता है।
  • मानसूनी पवनें दो शाखाओं में विभाजित होती हैं: अरब सागर शाखा और बंगाल की खाड़ी। अरब सागर शाखा पश्‍चिम तट से गुजरती है और मुंबई पहुंचती है, जबकि बंगाल की खाड़ी शाखा समुद्र से आर्द्रता लेकर असम पहुंचती है।
  • अरब सागर शाखा आगे तीन शाखाओं में विभाजित है:
    (a) पहली शाखा केरल और कर्नाटक राज्य सहित पश्‍चिमी तट पर लंबवत रूप से पहुंचती है।
    (b) दूसरी शाखा मुंबई तट में प्रवेश करती है और गंगा के मैदानों में प्रवेश करने से पहले छोटा नागपुर का पठार को पार करते हुए मुख्य भूमि के माध्यम से गुजरती है।
    (c) तीसरी शाखा कच्छ प्रायद्वीप में प्रवेश करती है और अरवली पर्वत के समानांतर गुजरती है जिससे अल्‍प वर्षा होती है।
  • बंगाल की खाड़ी शाखा दक्षिण और दक्षिण-पूर्व दिशा (पूर्व से विस्थापित) से भारत में प्रवेश करने के बाद हिमालय की उपस्थिति के कारण दो शाखाओं में विभाजित होती है। एक शाखा मैदानों से गुजरने के बाद पंजाब के मैदानों में प्रवेश करती है और दूसरी शाखा ब्रह्मपुत्र मैदानों में प्रवेश करती है और उत्‍तर-पूर्व क्षेत्रों में भारी मात्रा में वर्षा करती है।

Source: NCERT

  • दोनों उत्‍तर-पश्‍चिमी भाग में गंगा के मैदानी इलाकों में मिलती हैं जिससे उपयोगी वर्षा होती है।
  • पश्‍चिमी तटों में पर्वतीय वर्षा होती है क्योंकि आर्द्र वहनीय पवनें पश्‍चिमी घाटों में उत्‍पन्‍न होती हैं और कम समयावधि में अत्‍यधिक वर्षा प्रदान करती हैं।
  • चूंकि पूर्वी घाट मानसून पवनों की बंगाल की खाड़ी शाखा के समांतर स्‍थित है इसलिए यहां दक्षिण-पश्‍चिम मानसूनी पवनों के माध्यम से अधिक वर्षा नहीं होती है विशेष रूप से दक्षिण-पूर्वी तट पर और इसका एक कारण वर्षा-आच्‍छादित क्षेत्र भी है। इस प्रकार पूर्वी तट ग्रीष्‍मकाल के दौरान शुष्क रहता है
  • उत्‍तर-पूर्व में पहुंचने के बाद यह शाखा हिमालय जो पवनों को उत्‍तर दिशा में जाने से रोकता है, उसकी स्थिति के कारण पर्वतीय वर्षा प्रदान करती है और गंगा के मैदानी इलाकों के साथ देश के पश्‍चिमी भाग की ओर मुड़ जाती हैं।
  • वर्षा देश के पूर्वी भाग में पूर्व से पश्‍चिम की ओर और पश्‍चिमी तट पर पश्‍चिम से पूर्व की ओर कम होती जाती है।
  • मानसून में विच्‍छेद (विराम) – दक्षिण-पश्‍चिम मॉनसून की अवधि में, कुछ दिनों या सप्‍ताह के लिए वर्षा में विराम होगा। इस विराम का मुख्य कारण उत्‍तरी भाग में मानसून की कमी (और आई.टी.सी.जेड) में उतार-चढ़ाव है और यह मुख्य भूमि में नमी युक्‍त पवनों की संभावना को कम करता है। इसके अतिरिक्‍त पश्‍चिमी तट में पवनों के समानांतर पथ के कारण उस क्षेत्र में कुछ सप्‍ताह तक वर्षा नियंत्रित हो जाती है।

मानसून वापसी

  • सितंबर महीने तक सूर्य दक्षिणी अक्षांश की ओर बढ़ने लगता है। इस प्रकार गंगा के मैदानों के साथ निम्‍न दाब के केंद्र कमजोर हो जाते हैं और धीरे-धीरे उच्च दाब के केंद्र में बदल जाते हैं।
  • मानसून देश के पश्‍चिमी भाग से वापस जाता है, इस प्रकार दिसंबर के महीने तक निम्‍न दाब के केंद्र धीरे-धीरे स्‍थल क्षेत्र से पूरी तरह समाप्‍त हो जाते हैं और बंगाल की खाड़ी के उत्‍तर में निम्‍न दाब का क्षेत्र उत्‍पन्‍न हो जाता है।
  • अक्टूबर की गर्मी – जब दक्षिण पश्‍चिम मॉनसून स्‍थल क्षेत्र से वापस जाता है तो यह साफ आसमान के साथ उच्च तापमान और आर्द्रता की विशेषता प्रकट करता है, इस प्रकार मौसम उमस वाला हो जाता है और इस स्थिति को अक्टूबर की गर्मी कहा जाता है।
  • देश के दक्षिण-पूर्व तट और तमिलनाडु के अंदर उत्‍तर-पूर्व मानसून और पूर्व तट से गुजरने वाले उष्णकटिबंधीय चक्रवात से अक्टूबर और नवंबर दोनों महीनों में भारी वर्षा होती है।

Source: NCERT

भारतीय मानसून पर वैश्‍विक घटनाओं के प्रभाव

अल-नीनो दक्षिणी स्‍पंदन (ई.एन.एस.ओ)

  • दक्षिणी प्रशांत महासागर में दाब की स्थिति का भारतीय मानसून पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है।
  • आम तौर पर दक्षिण-पूर्व प्रशांत महासागर में उच्च दाब रहता है और इस क्षेत्र से पवनें दक्षिण-पश्‍चिम प्रशांत महासागर की ओर चलती है जहां निम्‍न दाब वाला क्षेत्र रहता है।
  • इस स्‍थिति का विपरीत अर्थात दक्षिण-पूर्व प्रशांत महासागर में निम्‍न दाब से एक घटना उत्‍पन्‍न होती है जो दक्षिणी स्‍पंदन (एस.ओकहलाता है

अल नीनो – अल नीनो एक ऐसी घटना है जिसमें पेरू की धारा (ठंडी धारा) गर्म महासागरीय धारा में परिवर्तित हो जाती है जिससे दक्षिण-पूर्व प्रशांत महासागर में निम्‍न दाब वाला क्षेत्र उत्‍पन्‍न हो जाता है। यह ठंडी धारा का अस्थाई परिवर्तन है और संभवत: 2 से 5 वर्ष तक भिन्न रहता है।

ई.एन.एस.ओ (अल नीनो दक्षिणी स्‍पंदन) एक ऐसी घटना है जिसमें प्रशांत महासागर में अल नीनो के कारण दाब परिवर्तन होता है।

हिंद महासागर द्विध्रुव (आई.ओ.डी) – यह भूमध्य रेखा पर दक्षिणी हिंद महासागर में अनियमित दाब से जुड़ी एक घटना है।

इस घटना को दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है:

  • धनात्मक हिंद महासागर द्विध्रुव – इसमें पूर्वी हिंद महासागर में उच्च दाब का क्षेत्र और पश्‍चिमी हिंद महासागर में निम्‍न दाब का क्षेत्र होता है, इस प्रकार पवनें सुमात्रा क्षेत्र से मेडागास्कर की ओर चलती हैं। यह मानसूनी पवनों को उत्‍तरी गोलार्ध में प्रवेश करने के लिए अतिरिक्‍त देकर सहायता पहुंचाता है जिसके परिणामस्वरूप भारतीय उपमहाद्वीप में अधिक वर्षा होती है।
  • ऋणात्मक हिंद महासागर द्विध्रुव – दक्षिणी गोलार्ध में उच्च दाब वाले मेडागास्कर क्षेत्र (पश्‍चिमी हिंद महासागर) से पवनें पूर्वी हिंद महासागर (ऑस्ट्रेलिया के पश्‍चिम) की ओर चलती हैं, इस प्रकार मानसूनी पवनें (दक्षिण-पूर्व व्‍यापारिक पवनें) रुक जाती हैं जिससे पवनों की उत्‍तरी हिंद महासागर में प्रवेश करने की तीव्रता कम हो जाती है और परिणाम स्‍वरूप भारतीय उप-महाद्वीप में खराब मानसून हो जाता है।

कोपेन का वर्गीकरण

  • विश्‍व क्षेत्रों का जलवायु वर्गीकरण विभिन्न वैज्ञानिकों द्वारा विकसित किया गया है, लेकिन विश्‍व का कोपेन जलवायु वर्गीकरण एक प्रयोगसिद्ध वर्गीकरण है और विभिन्न कारकों पर विचार करके विकसित किया गया था।
  • इसे कोपेन द्वारा वर्ष 1884 में विकसित किया गया था।
  • इस वर्गीकरण में उन्होंने वनस्पति विस्‍तार के आधार पर क्षेत्रों का सीमांकन करके उन्‍हें वनस्पति और जलवायु से संबद्ध किया।
  • वर्षा वितरण के साथ संबद्ध करने के लिए तापमान और वर्षा की औसत मात्रा ली जाती है और व्युत्पन्न मान जलवायु वर्गीकरण के लिए उपयोग किए जाते हैं।
  • समूहों और विभिन्‍न प्रकार की जलवायु के प्रयोजन हेतु उन्होंने बड़े और छोटे वर्णमाला अक्षर का उपयोग किया।
  • कोपेन द्वारा 5 प्रमुख जलवायु समूहों को मान्यता प्रदान की गई है, जिनमें से चार तापमान पर आधारित हैं और एक समूह वर्षा पर आधारित है।
  • जलवायु समूह एक क्षेत्र और इसके मौसम के तापमान और वर्षा की विशेषताओं के आधार पर कई प्रकार की जलवायु में उप-विभाजित होते हैं।
  • जलवायु समूह A, C, D, E (आर्द्र जलवायु के लिए) अक्षरों और B (शुष्क जलवायु के लिए) अक्षर द्वारा दर्शाए जाते हैं। जलवायु प्रकार f (शुष्क मौसम नहीं), m (मानसून जलवायु), w (शीतकालीन शुष्क मौसम), s (ग्रीष्‍मकालीन शुष्क मौसम) द्वारा दर्शाए जाते हैं।

जलवायु समूह

समूह

विशेषताएं

A- उष्‍णकटिबंधीय प्रदेश

सबसे ठंडे महीने का औसत तापमान 180C या उससे अधिक होता है

B- शुष्‍क जलवायु

संभवनीय वाष्‍पीकरण वर्षा से अधिक होता है

C- उष्‍ण समशीतोष्‍ण

जलवायु वर्षों के सबसे ठंडे महीने (मध्‍य-अक्षांश) का औसत तापमान -30C से अधिक लेकिन 180C से कम होता है

D- ठंडी हिम वन जलवायु

सबसे ठंडे महीने का औसत तापमान -30C या उससे नीचे होता है

E- ठंडी जलवायु

सभी महीनों के लिए औसत तापमान 100C के नीचे होता है

H- पर्वतीय क्षेत्र

ऊंचाई के कारण ठंड होती है

जलवायु का प्रकार

समूह

प्रकार

अक्षर कोड

विशेषताएं

A- उष्‍णकटिबंधीय आर्द्र जलवायु

उष्‍णकटिबंधीय आर्द्र

उष्‍णकटिबंधीय मानसून

उष्‍णकटिबंधीय आर्द्र एवं शुष्‍क

Af

Am

Aw

कोई शुष्‍क मौसम नहीं

मौसमी, अल्‍प शुष्‍क ऋतु

शीतकालीन शुष्‍क मौसम

B- शुष्‍क जलवायु

उपोष्‍णकटिबंधीय घास के मैदान

उपोष्‍णकटिबंधीय मरुस्‍थल

मध्‍य अक्षांशीय घास के मैदान

मध्‍य अक्षांशीय मरुस्‍थल

BSh

BWh

BSk

BWk

निम्‍न-अक्षांशीय अर्ध शुष्‍क

निम्‍न-अक्षांशीय शुष्‍क

मध्‍य-अक्षांशीय अर्ध शुष्‍क

मध्‍य-अक्षांशीय शुष्‍क

C- उष्‍ण समशीतोष्‍ण (मध्‍य अक्षांशीय जलवायु)

आर्द्र उपोष्‍णकटिबंधीय

भूमध्‍यसागरीय

समुद्री पश्‍चिमी तट

Cfa

Cs

Cfb

कोई शुष्‍क मौसम नहीं, उष्‍ण ग्रीष्‍मकाल

शुष्‍क उष्‍ण ग्रीष्‍मकाल

कोई शुष्‍क मौसम नहीं, उष्‍ण और शीत ग्रीष्‍मकाल

D- ठंडी हिम वन जलवायु

आर्द्र महाद्वीपीय

उप-उत्‍तरध्रुवीय (सबआर्कटिक)

Df

Dw

कोई शुष्‍क मौसम नहीं, अत्‍यधिक ठंड

शुष्‍क और बहुत अधिक ठंड

E- ठंडी जलवायु

टुंड्रा

ध्रुवीय हिम शिखर

ET

EF

कोई स्‍वाभाविक गर्मी नहीं

पूरे वर्ष बर्फ

H- पर्वतीय क्षेत्र

पर्वतीय क्षेत्र

H

हिम आच्‍छादन वाले पर्वतीय क्षेत्र


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