Thursday, December 3, 2020

PRE(IAS)Exam-Paper 1st-Sub Topic-Tribal Revolts in India

ब्रिटिश शासन को न सिर्फ भारतीय नागरिकों के विद्रोह का सामना करना पड़ा बल्कि उसे संपूर्ण उपनिवेश भारत के विभिन्न क्षेत्रों की जातियों के विद्रोह का भी सामना करना पड़ा था। अंग्रेजी शासन के खिलाफ प्रतिरोध की कड़ी लहर वर्तमान झारखण्ड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, बंगाल और उत्तर-पूर्वी राज्य में थी।

अंग्रेजी शासन के दौरान भारत में आदिवासी विद्रोह

  • ब्रिटिश उपनिवेश शासन के उत्पीड़न के खिलाफ सबसे पहला विद्रोह करने वाली समकालीन ओडिशा की आदिवासी जनता थी।
  • विभिन्न आदिवासी समूहों के भौगोलिक क्षेत्र के आधार पर, इन विद्रोहों को दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है:
  1. गैर-सीमावर्ती आदिवासी
  2. सीमावर्ती आदिवासी

इन आदिवासी विद्रोहों के मुख्य कारण हैं:

  1. उत्पीड़नकारी भू राजस्व नीतियां और आदिवासी समुदाय के क्षेत्रों में बाहरी गैर-आदिवासी जनसंख्या द्वारा वन भूमि पर कृषि और वृक्षारोपण गतिविधियों का विस्तार।
  2. कई ईसाई मिशनरियों के कार्यों को संदेह की दृष्टि से देखा गया और आदिवासी जनसंख्या के सामाजिक आर्थिक रीति-रिवाजों में हस्तक्षेप के रूप में माना गया|
  3. बड़ी निर्माण परियोजनाओं जैसे रेलवे के विस्तार के लिए लकड़ी की बढ़ती मांग के कारण विभिन्न वन अधिनियम पारित किए गए जिसने आदिवासी क्षेत्रों की वन भूमि पर सरकार का पूर्ण एकाधिकार स्थापित किया था।
  4. उत्तर-पूर्वी आदिवासी समूहों के विद्रोह प्रायः बाहरी लोगों, जमींदारों और शासकों के खिलाफ थे।
  5. निजी संपत्ति का विचार आया, अब भूमि को खरीदा, बेचा अथवा गिरवी रखा जा सकता था जिसके कारण आदिवासियों की भूमि का नुकसान उठाना पड़ा।

गैर-सीमावर्ती आदिवासी विद्रोह

वर्ष

विद्रोह

विद्रोह से जुड़े तथ्य

1778

पहरिया विद्रोह

स्थान: राजमहल पहाड़ियां

नेतृत्वकर्ता: पहरिया लड़ाके

कारण: उनकी जमीनों पर अंग्रेजों का आधिपत्य

1776

चौर विद्रोह

स्थान: बंगाल

नेतृत्वकर्ता: चौर के मूल आदिवासी

कारण: अंग्रेजों का आर्थिक निजीकरण

1831

कोल विद्रोह

स्थान: छोटानागपुर

नेतृत्वकर्ता: बुद्धो भगत

कारण: अंग्रेजी शासन विस्तार और भूमि सुधार

1827-1831

हो और मुंडा विद्रोह

स्थान: सिंहभूम और छोटानागपुर

नेतृत्वकर्ता: राजा प्रभात और अन्य

कारण: अंग्रेजी विस्तार और राजस्व नीति

1890 -1900

उत्तर मुंडा और उलुंगुलन विद्रोह

स्थान: रांची और छोटानागपुर

नेतृत्वकर्ता: बिरसा मुंडा

कारण: सामंती और जमींदारी प्रथा तथा साहूकारों के उत्पीड़न और वन क्षेत्रों में उनके अधिकारों को अस्वीकराने के खिलाफ।

1855-56

संथाल विद्रोह

स्थान: बिहार

नेतृत्वकर्ता: सिडो और कान्हू

कारण: सामंती और जमींदारी प्रथा तथा साहूकारों के उत्पीड़न के खिलाफ। बाद में इसने अंग्रेजी विरोधियों को दबा दिया।

कई आदिवासी विद्रोहों के बीच, संथाल विद्रोह सबसे उल्लेखनीय था। जब सन् 1793 में बंगाल में स्थायी बंदोबस्त की व्यवस्था लागू की गई थी, तो संथालों को पारिश्रमिक अथवा किराए मुक्त भूमि के साथ श्रमिकों के रूप में भर्ती किया गया था। हालांकि, उन्हें बलात कृषि मजदूर बनाया गया, और शोषण भी किया गया।

1837-56

कांध विद्रोह

स्थान: तमिलनाडु से बंगाल तक

नेतृत्वकर्ता: चक्रा बिसोई

कारण: आदिवासी रीति-रिवाजों में दखल और नए कराधान

1860

नैकाडा विद्रोह

स्थान: मध्य प्रदेश और गुजरात

कारण: अंग्रेजों और हिंदु जातियों के खिलाफ

1870

खारवाड़ विद्रोह

स्थान: बिहार

कारण: राजस्व निपटान गतिविधियों के खिलाफ

1817-19 & 1913

भील विद्रोह

स्थान: पश्चिमी घाट के क्षेत्र

कारण: कंपनी शासन के खिलाफ और भील राज स्थापना करने के लिए

1967-68; 1891-93

भुयान और जौंग विद्रोह

स्थान: केयोंझर, ओडिशा

नेतृत्वकर्ता: रत्ना नायक और धामी धार नायक

कारण: राज्य हरण की नीति

1880

कोया विद्रोह

स्थान: आंध्र प्रदेश का गोदावरी क्षेत्र

नेता: राजा अंनतयार

कारण: सामंती और जमींदारी प्रथा तथा साहूकारों के उत्पीड़न, वन भूमि पर उनके अधिकारों को अस्वीकारने के विरुद्ध।

1910

बस्तर विद्रोह

स्थान: जगदलपुर क्षेत्र

कारण: नए सामंती और वन करारोपण।

1914-15

तन भगत आंदोलन

स्थान: छोटा नागपुर क्षेत्र

नेतृत्वकर्ता: जत्रा भगत और बलराम भगत।

कारण: बाहरी लोगों का हस्तक्षेप, संस्कृतिकरण आंदोलन के रूप में शुरु हुआ।

1916-1924

रम्पा विद्रोह

स्थान: आंध्र प्रदेश क्षेत्र

नेता: अलूरी सीताराम राजू

कारण: आदिवासी रीति-रिवाजों में हस्तक्षेप और नया कराधान।

1920 से

झारखंड विद्रोह

स्थान: छोटानागपुर क्षेत्र, बिहार, ओडीसा और पश्चिम बंगाल के क्षेत्र।

आदिवासी महासभा का गठन 1937 में हुआ था।

1920-1930

वन सत्याग्रह

नेतृत्वकर्ता: चेंचू आदिवासी और कारवाड़।

कारण: आदिवासी क्षेत्रों के आंतरिक मामलों में अंग्रेजी हस्तक्षेप

अंग्रेजी प्रशासनिक सुधार

अत्यधिक भूमि पैमाइश

1940

गोंड विद्रोह

गोंड धर्म के अनुयायियों को साथ लाने के लिए।

उत्तर-पूर्वी सीमावर्ती आदिवासी विद्रोह

वर्ष

विद्रोह

तथ्य

1823-33

अहोम विद्रोह

स्थान: असम

कारण: बर्मा युद्ध के बाद अंग्रेजों द्वारा किए गए वादों को पूरा नहीं करने के विरोध में

परिणाम: प्रथम बर्मा युद्ध (1824-26) के बाद अंग्रेजों ने असम से पीछे हटने का वादा किया था लेकिन इसके उलट युद्ध के बाद अंग्रेजों ने अहोम (असम) क्षेत्र को कंपनी के अधिराज्य में मिलाने का प्रयास किया।

इसके विद्रोह में सन् 1828 में गोमधर कोंवार के नेतृत्व में एक विद्रोह हुआ।

आखिर में, कंपनी ने मित्रतापूर्ण नीति अपनायी और ऊपरी असम को महाराजा पुरुंदर सिंह नरेन्द्र को और राज्य के भागों को असम के राजा को सौंपने का फैसला लिया।    

1830

खासी विद्रोह

स्थान: मेघालय का पहाड़ी क्षेत्र

नेता: नुनकलो शासक तीरथ सिंह

कारण: पहाड़ी क्षेत्रों में रोजगार के खिलाफ

परिणाम: सड़क निर्माण के लिए श्रमिकों को सूची में नाम लिखाने की बाध्यता होने के कारण खासी ने खासी मुखिया तीरथ सिंह के नेतृत्व में विरोध कर दिया। बाद में गारो भी इसमें शामिल हो गए।

1930

सिंगपो विद्रोह

स्थान: असम

कारण: आदिवासी क्षेत्रों के आंतरिक मामलों में अंग्रेजी हस्तक्षेप और अत्यधिक भूमि पैमाइश के साथ प्रशासनिक सुधार।

1917-19

कुकी विद्रोह

स्थान: मणिपुर

कारण: प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान अंग्रेज श्रमिक भर्ती नीतियों के खिलाफ।

1920

जेलियांग सोंग विद्रोह

स्थान: मणिपुर

नेतृत्वकर्ता: जेमी और लिआंगमेई जनजाति

कारण: अंग्रेजी कूकी के आतंक के दौरान इन आदिवासियों को बचाने में असफल रहे थे।

1905-31

नागा विद्रोह

स्थान: मणिपुर

नेतृत्वकर्ता: जडोनांग

यह अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ और नागा राज स्थापित करने के लिए था।

1930

हेरका पंथ

स्थान: मणिपुर

नेतृत्वकर्ता: रानी गैधिंलु

इस आंदोलन के फलस्वरूप, सन् 1946 में काबुई नागा एसोसिएशन का गठन हुआ था।

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