Wednesday, November 18, 2020

PRE(IAS)Exam - 1st Paper - Sub topic-Bhakti and Sufi Movement

मध्यकालीन भारत में भक्ति और सूफी आन्दोलन

भक्ति आंदोलन

दक्षिण भारत में विकास

भक्ति आंदोलन की शुरुआत 7वीं से 12वीं शताब्‍दी के मध्‍य तमिलनाडु में हुई थी। यह नयनार (शिव भक्‍तों) और अलवार (विष्‍णु भक्‍तों) की भावपूर्ण कविताओं से स्‍पष्‍ट होता है। इन संतों ने धर्म की नीरस औपचारिक पूजापाठ के रूप में नहीं बल्कि भगवान और भक्‍त के बीच प्रेम के आधार पर प्रेम संबंध के रूप में पहचान कराई।

विशेषताएं

  • अनुष्‍ठानों और बलि का विरोध किया
  • हृदय और बुद्धि, मानवतावाद और भक्ति की शुद्धता पर बल दिया
  • एकेश्‍वरवादी प्रकृति के थे
  • भगवान के या तो सगुण या निर्गुण रूप थे
  • एक समतावादी आंदोलन, इन्‍होंने जातिवाद की निंदा की
  • इन संतों ने स्‍थानीय भाषा में धर्मोपदेश दिए
  • इन्‍होंने जैनियों और बौद्धों द्वारा प्रचारित तपस्‍या का खंडन किया। भक्ति आंदोलन के कारण इन धर्मों के प्रसार में कमी आई।
  • समाज सुधार:
  1. उपेक्षित जाति व्‍यवस्‍था
  2. संस्‍थागत धर्म, ब्राह्मणों के वर्चस्‍व, मूर्ति पूजा, संस्‍कारों आदि के दिखावे के अभ्‍यास पर चढ़ाई की
  3. सती और महिला भ्रूण हत्‍या का विरोध किया
  4. इनका लक्ष्‍य हिंदु और मुस्लिम के बीच आई दूरी को समाप्‍त करना था

दार्शनिक विचारधारा

दर्शन

संस्‍थापक

विशिष्‍टद्वैत

रामानुज

द्वैताद्वैत/भेदाभेद

निम्‍बार्क

द्वैत

माधव

शुद्ध अद्वैत

विष्‍णु स्‍वामी

अद्वैत गैर-द्वैतवाद

शंकराचार्य

महत्‍वपूर्ण तथ्‍य

1) अप्‍पार, सामबांदर, सुंदरमूर्ति और मानिक्‍कवासागर प्रमुख नयनार संत थे। प्रथम तीन के भजन देवरम में उल्‍लेखित हैं। थिरुवसागम की रचनामानिक्‍कवासागर द्वारा की गई थी।

2) तिरुमुराई नयनार संतों के कार्यों का संकलन है जिसे पंचम वेद की भी संज्ञा दी जाती है।

3) अंदाल महिला अलवार संत थीं। अलवार संतों की संख्‍या 12 और नयनार संतों की संख्‍या 63 बताई जाती है। शेखिज़ार की पुरिसापुरानम नयनारों के जीवन इतिहास की झलक को दर्शाता है।

4) दिव्‍य प्रबंधम अलवार संतों के भजनों का संकलन था।

उत्‍तर भारत में भक्ति आंदोलन का विकास

  • संतों ने स्‍थानीय भाषाओं तमिल और तेलगू में लिखा और इसलिए कईं लोगों तक प्रचार करने में सफल रहे। उन्‍होंने संस्‍कृत रचनाओं का स्‍थानीय भाषाओं में भी अनुवाद किया। कुछ संत निम्‍न हैं:
  1. ज्ञानदेव – मराठी
  2. कबीरदास, सूरदास, तुलसीदास – हिन्‍दी
  3. शंकरदेव – असमी
  4. चैतन्‍य और चंडीदास – बंगाली
  • आंदोलन के उत्‍तरी क्षेत्र में जाने पर, उत्‍तर की प्रचलित भाषा संस्‍कृत को एक नया रूप मिला। 9वीं शताब्‍दी में भागवत पुराण एक प्रमुख रचना थी और भक्ति आंदोलन का एक महत्‍वपूर्ण हिस्‍सा था।
  • कबीर, नामदेव और गुरुनानक ने भगवान के निराकार स्‍वरूप की भक्ति का प्रचार किया। गुरुनानक के अनुयायी स्‍वयं को सिक्‍ख बुलाते थे।

वैष्‍णव आंदोलन

  • भगवान के साकार रूप की भक्ति पर बल दिया। राम और श्रीकृष्‍ण को भगवान विष्‍णु के अवतार के रूप में देखा गया। प्रमुख प्रचारक सूरदास, मीराबाई, तुलसीदास और चैतन्‍य थे जिन्‍होंने कविता, गायन, नृत्‍य और कीर्तन को मोक्ष प्राप्‍ति‍ का मार्ग बताया।
  • सूरदास की सूरसागर, तुलसीदास की रामचरितमानस इस काल की महत्‍वपूर्ण रचनाएं थीं।

भक्ति संत

  • रामानंद – उत्‍तर भारत के पहले महान संत।
  • कबीर – रामानंद के शिष्‍य, निर्गुणवादी संत, इन्‍होंने हिंदु-मुस्लिम एकता का प्रचार किया, इनके अनुयायी कबीर पंथी कहलाए।
  • गुरुनानक – सिक्‍ख धर्म के संस्‍थापक, समाज सुधारक और निर्गुणवादी संत
  • चैतन्‍य – कृष्‍णा भक्ति पंथ और गौडिया या बंगाल वैष्‍णव के संस्‍थापक
  • पुरंदर दास – आधुनिक कर्नाटक संगीत की रचना की
  • वल्‍लभाचार्य – पुष्टिमार्ग के सिद्धांत का प्रतिपादन किया

महाराष्‍ट्र धर्म के भक्ति संत

  • ज्ञानदेव – महाराष्‍ट्र में भक्ति आंदोलन के संस्‍थापक; भावार्थदीपक – भगवत गीता का मराठी संस्‍करण
  • नामदेव – विठोवा या विट्ठल पंथ के संस्‍थापक जिसे वरकरी समुदाय के नाम से जाना जाता था
  • एकनाथ – रामायण पर टिप्‍पणी भावार्थ रामायण लिखी
  • तुकाराम – अभंग नाम से भक्तिपूर्ण कविता की रचना की
  • रामदास - दासबोध इनकी रचनाओं और उपदेशों का संकलन है

सूफ़ी आंदोलन

  • सूफ़ी आंदोलन के मूल को अबु हामिद अल-गज़ली (1058-1111 ईसवी) के मध्‍य देखा जा सकता है जो जो अशारी विचारधारा से जुड़े थे जिन्‍होंने रूढ़िवाद को रहस्‍यवाद के साथ मिलाया और सूफ़ी जीवन व्‍यतीत किया। उनके प्रभाव से मदरसों (विद्यालय) की स्‍थापना हुई और उलेमा (अध्‍येता) बने।

सूफ़ी

  • सूफ़ी रहस्‍यवादी थे।
  • उन्‍होंने धर्म की अवनति, धन के अश्‍लील दिखावे, रुढ़िवादिता आदि का विरोध किया।
  • इन्‍होंने स्‍वतंत्र विचारों और उदारवादी सोच पर बल दिया।
  • ये धर्म में औपचारिक अनुष्‍ठानों, कट्टरता और धर्मान्‍धता के खिलाफ थे।
  • इन्‍होंने ध्‍यान का अभ्‍यास किया। इन्‍होंने धर्म की ‘भगवान के प्रति प्रेम’ और ‘मानवता की सेवा’ के शब्‍दों में व्‍याख्‍या की। सूफ़ी संतों ने हिन्‍दु, इसाई और बौद्ध आदि धर्मों से कईं विचारों और रीतियों को आत्‍मसात किया था।
  • इन्‍होंने हिन्‍दु-मुस्लिम एकता और सांस्‍कृतिक मिलाप के लिए कईं कार्य किए।
  • सूफ़ी संतों को विभिन्‍न सिलसिला (नियमों) में बांटा गया था जिसमें प्रत्‍येक सिलसिला का स्‍वयं का एक पीर (मार्गदर्शक) होता था जिसे ख्‍़वाजा या शेख़ कहते थे। पीर और उनके शिष्‍य ख़ानकाह में रहते थे। पीर एक उत्‍तराधिकारी या वली को चुनता था जो उसके कार्यों को शिष्‍यों तक पहुंचाता था। सुफ़ी संत रहस्‍यमयी उत्‍साह बढ़ाने के लिए समास (धार्मिक संगीत का गायन) का आयोजन करते थे।

भारत में सूफ़ीवाद

  • सूफ़ी अफगानिस्‍तान से भारत में आए। शुरुआत में प्रमुख केन्‍द्र पंजाब और मुल्‍तान थे जो बाद में कश्‍मीर, बिहार, बंगाल और दक्‍कन तक फैल गया।
  • अबुल फज़ल ने आइन-ए-अक़बरी में चौदह सिलसिलों का जिक्र किया है। इनका निम्‍न में विभाजन किया गया है:
  1. बा-शारा: नियम जो शरीयत का पालन करते थे और उनके सिद्धांत नमाज़ और रोज़ा आदि थे। इनमें से प्रमुख चिश्‍ती, सुहारवादी, फरीदवासी, कादिरी और नक्षबंदी थे।
  2. बे-शारा: वे शरीयत से बंधे नहीं थे। कलंदर इस समूह से जुड़े थे।

सिलसिला

  • चिश्‍ती सिलसिला: इसकी स्‍थापना ख्‍़वाजा मुईद्दीन चिश्‍ती ने की थी जिन्‍होंने अजमेर को अध्‍ययन के केन्‍द्र के रूप में स्‍थापित किया था। इनके शिष्‍यों में शेख हामिदउद्दीन और कुतुबउद्दीन बख्‍ति‍यार काकी प्रमुख थे। शेख निजामुद्दीन औलिया के शिष्‍य बाबा फ़रीद ने दिल्‍ली को एक महत्‍वपूर्ण केन्‍द्र के रूप में स्‍थापित किया। नासिरुद्दीन चिराग-ए-दिल्‍ली के नाम से विख्‍यात शेख नासिरुद्दीन महमूद भी प्रसिद्ध चिश्‍ती संत थे।
  • सुहारवादी सिलसिला: इसकी स्‍थापना शेख शिहाबुद्दीन सुहारवादी ने की थी, इसे भारत में शेख बहाउद्दीन ज़कारिया ने स्‍थापित किया था। इन्‍होंने मुल्‍तान में खानका की स्‍थापना की और शैखुल इस्‍लाम की उपाधि धारण की।

सूफ़ी आंदोलन का महत्‍व

  • सूफ़ी संत वाहदत‍-अल-वज़ूद (एकता में रहने) के विचार में विश्‍वास रखते थे।
  • अमृत कुंड पर लेख हठ योग को अरबी और फारसी में अनुवाद किया गया।
  • सूफी संत आम लोगों के साथ निकट संपर्क बनाकर रखते थे।
  • सूफ़ी संत कवि थे जो स्‍थानीय भाषा में लिखते थे। अमीर खुसरो हिन्‍दी में लिखते थे और एक नईं शैली सब‍़क-ए-हिन्‍दी विकसित की।
  • सूफ़ी के उदारवादी विचारों ने अकबर के दीन-ए-इलाही धर्म को प्रभावित किया।

इस प्रकार, हम देख सकते हैं कि सूफ़ी और भक्ति आंदोलनों ने धार्मिक जीवन में नए प्राण डाले और समतावादी समाज बनाने के लिए सामाजिक सुधार किए। उन्‍होंने गरीबों और कुचले हुए लोगों के लिए कार्य किया और भगवान का अनुभव करने के लिए निजी भागीदारी में विश्‍वास किया।   


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